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दिल्ली के सरकारी स्कूलों के निर्माण में घोटाला! ACB की जांच में AAP के बड़े नेता घेरे में

दिल्ली स्कूल निर्माण घोटाला: सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया की मुश्किलें बढ़ीं, ACB ने दर्ज की एफआईआर दिल्ली में सरकारी स्कूलों में क्लासरूम बनाने के काम में हुए घोटाले के मामले में अब आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं की परेशानी और बढ़ गई है। बुधवार 30 अप्रैल को एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में एफआईआर दर्ज कर दी है। यह पूरा मामला लगभग 2000 करोड़ रुपये के घोटाले से जुड़ा है, जो दिल्ली सरकार के स्कूलों में 12,748 क्लासरूम या बिल्डिंग बनाने की योजना से जुड़ा हुआ है।

FIR किस आधार पर दर्ज हुई? ACB प्रमुख मधुर वर्मा ने बताया कि यह एफआईआर सेंट्रल विजिलेंस कमिशन (CVC) की रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई है। यह रिपोर्ट CVC के मुख्य तकनीकी परीक्षक ने बनाई थी और इसे फरवरी 2020 में मंजूरी भी मिल गई थी। रिपोर्ट में स्कूल निर्माण के काम में कई गड़बड़ियों की बात सामने आई थी। लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस रिपोर्ट को करीब तीन साल तक दबा कर रखा गया। अब जब भ्रष्टाचार रोकथाम कानून की धारा 17-A के तहत जरूरी मंजूरी मिल गई, तो केस दर्ज कर लिया गया।

शुरुआत कैसे हुई? ये मामला सबसे पहले सामने तब आया जब बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने 2019 में इस घोटाले की शिकायत की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूलों में एक्स्ट्रा क्लास बनाने के नाम पर बहुत बड़ा घोटाला हुआ है, खासकर जोन 23, 24 और 28 में। तिवारी का कहना था कि दिल्ली सरकार ने एक क्लास बनाने पर औसतन 28 लाख रुपये खर्च कर दिए, जबकि आमतौर पर एक क्लास सिर्फ 5 लाख में बन जाती है।

बिना तय प्रक्रिया के सलाहकार और आर्किटेक्ट रखे गए जांच में यह भी सामने आया कि इस प्रोजेक्ट के लिए जो सलाहकार और आर्किटेक्ट रखे गए थे, उन्हें किसी भी तय प्रक्रिया के बिना ही चुन लिया गया। इन लोगों की वजह से लागत में काफी इजाफा हुआ। इसके अलावा, 34 ठेकेदारों को यह काम सौंपा गया, जिनमें से ज़्यादातर का किसी न किसी तरीके से AAP से संबंध बताया जा रहा है। और सबसे अहम बात ये कि एक भी काम तय वक्त पर पूरा नहीं हुआ।

सरकार के तय निर्देशों की नहीं हुई परवाह 2015-16 के बजट के दौरान फाइनेंस कमेटी की बैठकों में ये साफ तय किया गया था कि ये काम जून 2016 तक तय लागत में ही पूरा किया जाएगा और आगे कोई अतिरिक्त खर्च नहीं किया जाएगा। लेकिन अधिकारियों ने इन निर्देशों को नजरअंदाज कर दिया और न सिर्फ खर्च बढ़ाया, बल्कि तय समयसीमा का भी उल्लंघन किया। अस्थायी ढांचे पर खर्च, लेकिन कीमत स्थायी बिल्डिंग जितनी रिपोर्ट में कहा गया कि इन अस्थायी कक्षों की लागत आखिर में इतनी बढ़ गई कि वो स्थायी इमारतों के खर्च के बराबर हो गई। ऐसे में यह बड़ा सवाल उठता है कि जब खर्च इतना ही हो रहा था, तो फिर अस्थायी ढांचे क्यों बनाए गए? गंभीर नियम उल्लंघन पाए गए CVC की तकनीकी रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इस पूरे काम में CPWD मैनुअल 2014, जनरल फाइनेंशियल रूल्स 2017 और दूसरे नियमों का उल्लंघन हुआ है। टेंडर पास होने के बाद लिए गए कई फैसले भी नियमों के खिलाफ थे, जिनकी वजह से लागत और बढ़ी और सरकार को बड़ा नुकसान हुआ।

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