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ऋषि सुनक को बड़ा झटका, 78 सांसदों ने दिया इस्तीफा

लंदन। ब्रिटेन में 4 जुलाई को आम चुनाव होने की घोषणा हो गई है। इसके बाद 44 वर्षीय भारतीय मूल के ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को अपनी ही कंजर्वेटिव पार्टी में संकट और विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उनकी पार्टी के कई बड़े नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी है और सांसद के पद से इस्तीफा देने का फैसला किया है। उनकी देखादेखी कई दूसरे सांसदों ने भी चुनाव से पलायन करने का फैसला किया है। बताया गया है कि कजर्वेटिव पार्टी के ऐसे सांसदों की संख्या कम से कम 78 है। ऋषि सुनक सांसदों के बड़े पैमाने पर पलायन के बीच अपने सहयोगियों और परिवार के साथ कुछ निजी समय निकाल रहे हैं।
इस बीच, प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने घोषणा की है कि अगर कंजर्वेटिव पार्टी फिर से जीतकर आई, तो वह अनिवार्य राष्ट्रीय सेवा नियम लाएंगे। इसमें युवाओं को 18 वर्ष होने पर एक वर्ष के लिए पूर्णकालिक सैन्य नियुक्ति का विकल्प दिया जाएगा या एक साल के लिए महीने के एक सप्ताहांत में वालंटियर सेवा देनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन आज एक ऐसे भविष्य का सामना कर रहा है, जो अधिक खतरनाक और विभाजित है। वहीं, कीर स्टार्मर के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी ने प्रस्ताव का विरोध किया है। पार्टी ने कहा है कि यह टोरी पार्टी की ओर से एक और हताश प्रतिबद्धता है। इसकी लागत अरबों में हो सकती है और इसकी आवश्यकता केवल इसलिए है, क्योंकि टोरीज ने सशस्त्र बलों को उनके सबसे छोटे आकार में ला दिया है।
बता दें कि कैबिनेट मंत्री माइकल गोव और एंड्रिया लेडसम इस चुनाव में दोबारा चुनाव न लड़ने के अपने फैसले की घोषणा करने वाले नवीनतम टोरी फ्रंटलाइनर बन गए, जिससे चुनावी दौड़ छोड़ने वाले पार्टी सदस्यों की संख्या 78 हो गई। शुक्रवार शाम को सोशल मीडिया पर जारी एक पत्र में गोव की घोषणा देश भर के निर्वाचन क्षेत्रों में मौजूदा टोरीज के लिए कड़ी चुनौतियों के बीच पहले से ही तय मानी जा रही थी। वहीं लेडसम ने कुछ ही समय बाद अपना पत्र जारी किया, जिसमें सुनक को लिखा गया कि “सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, मैंने आगामी चुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़ा नहीं होने का फैसला किया है।”
उन्होंने कहा कि जब इसे लेकर ब्रिटेन के गृहमंत्री जेम्स क्लेवरली से सवाल पूछा गया तो बताया गया कि सैन्य विकल्प चयनात्मक होगा। कोई आपराधिक प्रतिबंध नहीं होगा, इस पर किसी को जेल नहीं भेजा जाएगा। किसी को भी सैन्य कार्य करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, लेकिन जो ऐसा करेंगे उन्हें भुगतान किया जाएगा और जो स्वेच्छा से काम करना चुनेंगे उन्हें भुगतान नहीं किया जाएगा। राष्ट्रीय सेवा की शुरुआत 1947 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तत्कालीन लेबर सरकार द्वारा की गई थी। इसमें 17 से 21 वर्ष की आयु के पुरुषों को 18 महीने तक सशस्त्र बलों में सेवा करना आवश्यक था। यह अनिवार्य राष्ट्रीय सेवा योजना 1960 में समाप्त हो गई।

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