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आप भी शौक से खाते होंगे यह मिठाई, मगर गारंटी है नहीं जानते होंगे इसका दिलचस्प इतिहास

नई दिल्ली। रबड़ी एक ऐसी मिठाई है, जो आज भारत के लगभग हर कोने में पाई जाती है। बनारस के घाट हों, कान्हा की नगरी मथुरा हो या फिर राजस्थान के रजवाड़े, हर जगह रबड़ी का अपना अनोखा स्वाद देखने को मिलता है। यह एक ऐसी मिठाई है जो न सिर्फ अपने स्वाद, बल्कि दिलचस्प इतिहास के लिए भी जानी जाती है। दूध को गाढ़ा करके बनाई जाने वाली यह मिठाई भारत के कई हिस्सों में आज भी लोगों की पसंदीदा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक समय इस मिठाई पर बैन भी लगाया गया था? आइए विस्तार से जानते हैं कि यह बैन कब और कहां लगा था, इसकी वजह क्या थी और इस मिठाई की शुरुआत आखिर हुई कहां से है।

कहां से आई रबड़ी?

रबड़ी की उत्पत्ति के बारे में कोई एक तय कहानी नहीं मिलती है। यह एक ऐसी मिठाई है जिसकी जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में गहरी हैं। खासतौर से भारत और पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों को रबड़ी का जन्मस्थान माना जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में रबड़ी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे रबरी, राबड़ी और रबड़ी कुल्फी। यह मिठाई त्योहारों और विशेष अवसरों पर बनाई जाती है और लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है।

कई लोगों का मानना है कि रबड़ी का इतिहास भगवान कृष्ण से जुड़ा है और इसका जन्म मथुरा-वृंदावन में हुआ था। कहते हैं कि पहले इसे मथुरा में बनाया जाता था और फिर इसका स्वाद बनारस पहुंचा। बनारस के हलवाइयों ने रबड़ी में कई नए स्वाद और तरह-तरह के ड्राई फ्रूट्स मिलाकर इसे और भी स्वादिष्ट बना दिया। यह कहना मुश्किल है कि रबड़ी की शुरुआत कब हुई और कैसे हुई, लेकिन इतना तो तय है कि यह एक ऐसी मिठाई है जो सदियों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है।

राजा की फरमाइश पर बनी मिठाई

किंवदंतियों की मानें, तो राजस्थान के कुशल रसोइयों ने रबड़ी का आविष्कार किया था। कहा जाता है कि उन्हें एक राजा के लिए एक विशेष मिठाई बनाने का जिम्मा सौंपा गया था। रसोइयों ने दूध को घंटों तक पकाकर गाढ़ा किया, फिर इसमें चीनी और अन्य स्वादिष्ट सामग्री मिलाकर एक ऐसी मिठाई बनाई जो राजसी स्वाद से भरपूर थी। यह स्वादिष्ट व्यंजन जल्द ही आम लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया और धीरे-धीरे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया।
रबड़ी से जुड़ी एक कहानी मुगल काल की ओर भी इशारा करती है। कहा जाता है कि एक बंगाली शेफ ने दूध को गाढ़ा करके, उसमें चीनी और मेवे मिलाकर रबड़ी बनाई थी। इस मिठाई को केसर और गुलाब जल से और भी स्वादिष्ट बनाया गया था। रबड़ी इतनी लोकप्रिय हुई कि यह मुगल दरबारों की शान बन गई और सभी शाही दावतों में परोसी जाने लगी। रबड़ी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बंगाल में एक गांव का नाम ही रबड़ीग्राम पड़ गया। यह विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन दोनों कहानियां रबड़ी की लोकप्रियता और इसके स्वाद की गवाही देती हैं। हो सकता है कि रबड़ी का मूल रूप मथुरा में विकसित हुआ हो, लेकिन मुगल काल में इसे एक नया रूप दिया गया हो।

रबड़ी ने बदला गांव का नाम

पश्चिम बंगाल के हुगली में एक छोटे से गांव गंगपुर में, रबड़ी की खुशबू ने एक नई कहानी लिखी। एक बार, गांव का एक कुशल हलवाई कोलकाता घूमने आया और वहां उसने रबड़ी का अनोखा स्वाद चखा। उसका दिल रबड़ी के लिए ऐसा ललचाया कि उसने रेसिपी सीखने का मन बना लिया। गांव लौटकर उसने रबड़ी बनाई और पूरे गांव को इसका स्वाद चखाया। गांव वालों को रबड़ी इतनी पसंद आई कि धीरे-धीरे रबड़ी उनकी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा बन गई। आज इसी गांव को रबड़ीग्राम के नाम से जाना जाता है, जो रबड़ी के शौकीनों के लिए एक मशहूर जगह बन चुका है।

कहां लगाया गया था रबड़ी पर बैन?

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता ने एक बार रबड़ी पर बैन लगा दिया था। 1965 में, आर्थिक मंदी के कारण दूध की भारी कमी हो गई थी। चूंकि रबड़ी बनाने के लिए बड़ी मात्रा में दूध की जरूरत होती है, इसलिए अधिकारियों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। हालांकि, यह बैन इस लोकप्रिय मिठाई के शौकीनों के लिए बर्दाश्त से बाहर था। मिठाई बनाने वालों और आम लोगों ने मिलकर इस बैन के खिलाफ आवाज उठाई, जिसके चलते कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस प्रतिबंध को रद्द कर दिया था। आज रबड़ी न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में फेमस है।

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