हजार ऑडिशन देकर मैं बन ही गई हीरोइन, पापा की हां के इंतजार में बीत गए कई साल: कनिका गौतम
नईदिल्ली। ‘अपना अड्डा सीरीज में इस बार बात फरीदाबाद में जन्मी कनिका गौतम की। कनिका की पिता महेश कुमार शर्मा भारतीय वायुसेना से अभी पिछले साल ही सेवानिवृत्त हुए हैं और कनिका आज भी अपने पिता से अभिनय के लिए मिली अनुमति को याद कर भावुक हो जाती हैं। फरीदाबाद से निकलकर कनिका ने जम्मू के उधमपुर में अपनी स्कूल की पढ़ाई की और फिर इंजीनियरिंग में सिर्फ इस वजह से प्रवेश ले लिया क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे। कनिका बताती हैं, ‘मुझे नहीं पता कि एक्टर बनने का भूत मुझ पर कब और कैसे सवार हुआ, लेकिन बचपन से ही मुझे शीशे के सामने दूसरी अभिनेत्रियों की नकल उतारना, नाचना-गाना बहुत पसंद था। स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती तो लोग खूब तारीफ भी करते। और, बस मैंने एक दिन मन बना लिया कि मुझे भी हीरोइन ही बनना है। उस दिन से लेकर पहले दिन कैमरे का सामना करने तक मुझे कई साल लगे, काफी विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन मैंने अपनी लगन से कभी अपना मन नहीं हटाया। किसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ इस सवाल के जवाब में कनिका बताती हैं, जैसा कि हर छोटे शहर के परिवारों में होता है किसी बेटी का हीरोइन बनने की बात करना किसी गुनाह से कम नहीं है। मैं 11वीं की पढ़ाई शुरू करने वाली थी तो मैंने पहली बार ये बात अपनी नानी को बताई। मैंने उनसे कहा भी कि किसी को बताना मत, लेकिन उन्होंने मां को बता दिया। और, मां ने पापा को। और पापा की प्रतिक्रिया ये थी कि थप्पड़ क्यों नहीं मारा घर पर खूब हंगामा हुआ और कविता गौतम ने इसके बाद अपना मन मारकर 12वीं की पढ़ाई पूरी की। तब तक सब पुणे आ चुके थे, और यहां रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए उन्होंने फिर अपने बचपन के सपने को पंख दिए। कविता बताती हैं, मैंने बचपन से बस अभिनेत्री बनने का ही सोचा था।
मुझे लगा कि मुंबई के इतने पास आकर भी अपने मन की बात नहीं सुनी तो फिर पूरा जीवन खुद को ही कोसती रहूंगी। तो मैंने फिर घर में बात चलाई। फिर, घर में तीन-चार दिन तक महाभारत होती रही। और एक दिन मैं अपने कमरे में रो रही थी, तब पापा आए और बोले कि ठीक है, कर लो अपने सपने पूरे। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान कविता पुणे से मुंबई और मुंबई से पुणे के चक्कर लगाती रहीं। पहली फिल्म मिलने से पहले वह करीब एक हजार ऑडिशन दे चुकी थीं। कविता बताती हैं, कैमरे के सामने मेरा पहला ब्रेक एक कमर्शियल विज्ञापन फिल्म थी, जिसमें मैंने करीना कपूर के साथ काम किया। उसके बाद रास्ते खुलते गए। टेलीविजन धारावाहिकों में भी अच्छे रोल मिले। लेकिन, मेरी अभिनय यात्रा का अहम मोड़ बना विजक्राफ्ट का ब्रॉडवे म्यूजिकल ‘बल्ले बल्ले। इसमें मेरा लीड रोल देखकर मुझे रोल ऑफर होने लगे। कविता गौतम की बतौर लीड हीरोइन पहली फिल्म ‘प्यार के दो नाम बीते महीने ही सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। उनकी एक और फिल्म ‘कैसा ये फितूर पूरी हो चुकी है। कविता का मानना है कि लगातार कोशिश, धैर्य और खुद पर भरोसा हो, तो कामयाबी मिल ही जाती है। वह मानती हैं कि उनका रास्ता अभी लंबा और मंजिल दूर है, लेकिन वह ये भी कहती हैं, लगातार चलते रहने वाले मुसाफिर को मंजिल मिलती जरूर है।