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छत्तीसगढ़

Special report:चर्चा में…! पुराने दावेदार फिर सक्रिय टिकट की मांग, वंचित दावेदार की उम्मीदों को झटका

रायपुर। आम चुनाव को लेकर सियासत रफ्तार पकडऩे लगी है। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल समीकरण बन रहे हैं दल जीत का दावा कर रहे हैं। इस बीच विधानसभा चुनाव 2023 में पराजित उम्मीदवार फिर सक्रिय हैं। लोकसभा चुनाव में भाग्य आजमाना चाहते हैं, क्या उनकी उम्मीदों को पंख लग सकता है। पार्टी हाई कमान गहरी चिंता में है। वहीं विधानसभा चुनाव में टिकट पाने से वंचित भी उम्मीद लगाए बैठे हैं, क्या उनकी उम्मीदों को झटका लग सकता है।
भारतीय जनता पार्टी की सोच रही है की आम कार्यकर्ता को मौका मिलना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव 2023 में यह प्रयोग अपनाया और तीन राज्यों में अपप्रत्याशी जीत मिली। बाद में सीएम पद के पद पर यही प्रयोग अपनाया और बॉटम में बैठे कार्यकर्ता को सत्ता की कमान सौंप दी। यह प्रैक्टिकल लोकसभा में कितना कारगर साबित होगा यह तो आने वाला वक्त तय करेगा, परंतु यह तय है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत ने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। कांग्रेस आज भी पराजय को भुला नहीं पा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में जिन दावेदारों को टिकट नहीं मिल पाई थी उन सभी दावेदार को उम्मीद है और तैयारी भी चल रही है। लेकिन पराजित प्रत्याशी भी सक्रिय है, ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है क्या पीटे हुए मोहरे फिर टिकट पाने में सफल होंगे। सवाल बस इतना नहीं है कि चुनौती दी जा रही है। सवाल यह भी है कि जिन लोगों को विधानसभा में मौका नहीं मिल पाया क्या एक बार फिर वह वंचित हो सकते हैं। इस डर से हर तरह की कोशिशें चल रही है। भारतीय जनता पार्टी ने पिछली बार विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रयोग किया, नए चेहरों को मौका दिया और जीत हासिल हुई। लोकसभा में क्या यही तरीका अपनाया जाएगा और प्रैक्टिकल होगा।
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग से तीन लोकसभा सीट है कांकेर, जगदलपुर और कोंडागांव। यहां पर समीकरण आदिवासी क्षेत्र होने के कारण काफी चौंकाने वाला रह सकता है। जिस तरह से जगदलपुर के किरण देव को अध्यक्ष भाजपा ने कमान सौंप दी है तो निश्चित तौर पर नया प्रैक्टिकल होगा। वहीं नगरी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक लक्ष्मी ध्रुव लोकसभा में चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही है। भाजपा से टिकट मिलने के बावजूद पराजित उम्मीदवार श्रवण मरकाम लोकसभा की तैयारी कर रहे हैं, जबकि पिंकी शाह दौड़ में शामिल है। कांग्रेस के वर्तमान विधायक दीपक बैज की चुनौती को तो बरकरार रखा जाएगा। प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ बस्तर की जीत तय करना उनके कर कंधों पर है। इसलिए उनकी टिकट तो निश्चित है लेकिन शेष टिकट क्या होगी यह भी सूचना होगा। शिशुपाल फिर सक्रिय है। भाजपा नेत्री लता उसेण्डी से हार के बाद चुनौती तो बरकरार रखी है। खजाना खाली हो गया है फिर भी पार्टी से जिद है की टिकट लोकसभा की मिलनी चाहिए। एक सवाल यह भी है कि विधानसभा चुनाव जीतने के बाद छत्तीसगढ़ कैबिनेट में जिन विधायकों को मंत्री पद नहीं मिला है, क्या दोबारा से लोकसभा चुनाव में चुनौती देने का अवसर दिया जा सकता है। ऐसा प्रयोग होगा या नहीं यह चुनाव विश्लेषक भी नहीं कह रहे हैं। भाजपा को 11 सीट चाहिए कांग्रेस को मैदान में वापसी चाहिए। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास दो लोकसभा सीट थी और भाजपा ने 9 पर जीती थी। इस समीकरण के साथ सभी तैयारी कर रहे हैं। भाजपा को उम्मीद है विधानसभा की तरह लोकसभा चुनाव में भी कमल खिलेगा। अयोध्या मुद्दे के बाद से माहौल बदल गया है। मुद्दे बदल गए हैं, स्थानीय जरूरत को छोड़कर मतदाता भी राम भक्ति पर अधिक विश्वास कर रहे हैं। इसलिए ऐसा लगता है कि प्रयोग राम में होने के कारण भाजपा में हो जाएगा, किंतु कांग्रेस सचिन पायलट के नेतृत्व में राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सियासत को नया रूप देने की कोशिश कर रही है। युवा नेतृत्व कहां तक सफल होगा असल कांग्रेसी भी जानते हैं।
राजस्थान के साथ सचिन पायलट छत्तीसगढ़ की कमान को किस तरह से संभाल पाएंगे, क्या छत्तीसगढ़ में हाथ का निशान खिल सकता है, प्रश्न चिन्ह है। जिस तरह की तैयारी चल रही है उससे तो अभी तक संकेत खतरनाक लग रहे हैं। पार्टी में समन्वय की कमी दिख रही है। पुराने नेता एक साथ आज तक एक मंच पर बैठकर मंथन नहीं पाए हैं।

गठरी खोल टिकट पक्की
विधानसभा चुनाव 2023 के बाद लोकसभा चुनाव 2024 में निश्चित हो गया है कि जिसकी गठरी में जितना दम होगा वह टिकट ले जाएगा बाबा बागेश्वर के बाद राजनेता गठरी रखकर लेकर चलने की जरूरत आ गई है क्योंकि गठरी का खेल ही टिकट दिलाता है लोकसभा में 20 करोड़ से अधिक का गठरी जिन नेताओं के पास होगा टिकट उनकी पक्की है पार्टी हाई कमान और सर्वे एक बहाना है

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