दिल्ली के मद्रासी कैंप में चला बुलडोजर: 300 से ज्यादा झुग्गियों पर चला हथौड़ा, सियासत गरमाई

रविवार की सुबह: मद्रासी कैंप में बुलडोजर का कहर- यह लेख मद्रासी कैंप में हुई झुग्गी तोड़ने की कार्रवाई पर केंद्रित है, जिसमें 300 से अधिक झुग्गियां ध्वस्त की गईं। इस घटना ने न केवल लोगों के जीवन को तबाह किया, बल्कि राजनीतिक विवाद को भी जन्म दिया है।
रविवार की सुबह आई तबाही- रविवार की सुबह, मद्रासी कैंप के निवासियों की नींद बुलडोजर की आवाज से टूटी। एसटीएफ की टीम ने भारी पुलिस बल के साथ झुग्गियों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया। प्रशासन का दावा है कि यह कार्रवाई अवैध कब्जे के खिलाफ थी और पहले से नोटिस दिया गया था, लेकिन निवासियों का कहना है कि उन्हें ठीक से सूचित नहीं किया गया। मौके पर विरोध प्रदर्शन हुआ, लेकिन पुलिस की मौजूदगी ने विरोध को दबा दिया।
राजनीति में गरमाहट- इस घटना के बाद राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि उन्होंने एक दिन पहले ही झुग्गी तोड़ने से इनकार किया था। पार्टी ने इस मुद्दे को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के सामने भी उठाया है, आरोप लगाया है कि बीजेपी सरकार तमिल समुदाय के साथ भेदभाव कर रही है।
पुनर्वास का अधूरा वादा- अप्रैल में जारी सूची के अनुसार, 370 परिवारों में से केवल 189 को ही पुनर्वास के लिए पात्र माना गया। बाकी परिवार अब बेघर हैं और बरसात के मौसम में उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। उनका भविष्य अनिश्चित है और उन्हें नहीं पता कि वे आने वाले महीनों में कहाँ रहेंगे।
सरकार का दावा और जमीनी हकीकत- दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पहले कहा था कि सरकार झुग्गियां नहीं तोड़ती, बल्कि लोगों को पक्के घर देती है। लेकिन मद्रासी कैंप में हुई कार्रवाई ने उनके दावे की पोल खोल दी है। लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि सरकार का विकास का क्या मतलब है।
हाईकोर्ट का आदेश और सवालों का घेरा- यह कार्रवाई हाईकोर्ट के आदेश पर हुई है, जिसमें सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने पुनर्वास का भी आदेश दिया था, लेकिन लोगों को अभी तक ठीक से जानकारी नहीं मिली है। सवाल उठ रहा है कि क्या बुलडोजर चलाना ही एकमात्र उपाय था?
केवल पुनर्वास का अधिकार- कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि निवासियों को केवल पुनर्वास का अधिकार है, और जमीन पर उनका कोई निजी अधिकार नहीं है। लेकिन यह तर्क उन लोगों के लिए कठिन है जिन्होंने वर्षों से यहां रहकर अपना जीवन बनाया है। अब वे बेघर और निराश हैं।