जब एंबुलेंस नहीं पहुंची, गांववालों ने डोली को बनाया सहारा: सड़क अधूरी, सुविधाएं गायब – पर इंसानियत अब भी जिंदा है

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट क्षेत्र में एक गांव है भद्रकाली – यहां हालात ऐसे हैं कि आज भी किसी बीमार को अस्पताल पहुंचाना अपने आप में संघर्ष बन जाता है। गांव की सड़क अधूरी है, और ऐसे में जब 81 साल के बुजुर्ग गिरीश जोशी की तबीयत अचानक बिगड़ी, तो गांववालों के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था। एंबुलेंस गांव तक आ ही नहीं सकती थी क्योंकि सड़क बीच में ही अधूरी छोड़ दी गई है। ऐसे में गांव के ही कुछ युवकों ने कमान संभाली और बुजुर्ग को डोली में बैठाकर करीब तीन किलोमीटर तक पैदल चलकर सड़क तक पहुंचाया। इसके बाद ही उन्हें वाहन से कांडा अस्पताल तक ले जाया जा सका, जहां उन्हें इलाज मिल पाया।यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उन सैकड़ों गांवों की है जहां आज भी आधारभूत सुविधाएं एक सपना बनकर रह गई हैं।
चार साल पहले खुदी थी सड़क, लेकिन काम वहीं का वहीं अटका – भद्रकाली गांव के लोगों के मुताबिक, साल 2021 में विधायक निधि से गांव तक सड़क पहुंचाने का काम शुरू हुआ था। लाखों रुपये खर्च कर सड़क तो खोदी गई, लेकिन इसके बाद काम को अधूरा छोड़ दिया गया। चार साल बीतने के बाद भी न तो सड़क पूरी हुई और न ही गांववालों को कोई राहत मिली। यह हालात तब हैं जब पहाड़ी इलाकों में हर मिनट कीमती होता है – चाहे किसी को इलाज की जरूरत हो या किसी गर्भवती महिला को अस्पताल पहुंचाना हो। लेकिन जब गांव में सड़क ही नहीं हो, तो एंबुलेंस कैसे आएगी गांववालों का कहना है कि वो कई बार प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं।
डोली बनी जिंदगी का सहारा, गांववालों की हिम्मत को सलाम – रविवार को जब बुजुर्ग गिरीश जोशी की तबीयत अचानक खराब हुई, तो गांववालों ने एक पल की भी देर नहीं की। प्रदीप जोशी, दीपक जोशी, महेश जोशी, भास्कर जोशी, विपिन जोशी, जयकृष्ण जोशी, देवकीनंदन जोशी और गोपाल जोशी – इन सभी ने मिलकर डोली तैयार की और तीन किलोमीटर पैदल चलकर बुजुर्ग को सड़क तक लाए। वहां से वाहन से उन्हें 25 किलोमीटर दूर कांडा अस्पताल ले जाया गया।यह एक मिसाल है इंसानियत की, भाईचारे की और उस जज़्बे की, जो आज के समय में कम ही देखने को मिलता है। जब सिस्टम जवाब दे देता है, तब इंसान ही इंसान के काम आता है।
सवाल अब भी कायम: कब पहुंचेगा विकास इन गांवों तक – सरकारी दावों और योजनाओं के बावजूद भद्रकाली जैसे गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। गांव तक सड़क न होने का सीधा असर लोगों की सेहत, शिक्षा और रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है।सरकारें बदलती रहीं, नेता आते-जाते रहे, लेकिन गांव आज भी वहीं अटका है, जहां चार साल पहले था। सवाल यही है – क्या ग्रामीणों की जिंदगी की कीमत इतनी कम है कि चार साल से सड़क अधूरी पड़ी है और कोई देखने तक नहीं आता अगर आज गांव के लोग बुजुर्ग को डोली में न ले जाते, तो शायद कहानी कुछ और होती। ऐसे में ज़रूरत है सिस्टम को जगाने की और ये बताने की कि विकास का मतलब सिर्फ शहरों में मेट्रो और पुल नहीं, गांवों तक सड़क और सुविधा भी है।