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मनोज कुमार: संघर्ष से सितारों तक का सफ़र, सफलता की सीढ़ियाँ

‘भारत कुमार’ के नाम से मशहूर मनोज कुमार का निधन पूरे बॉलीवुड के लिए एक बड़ा झटका है। लेकिन उनकी ज़िंदगी सिर्फ़ चमक-दमक भर नहीं थी, बल्कि संघर्ष और लगन की एक बेहतरीन दास्तां भी थी। आइए, उनके शुरुआती दिनों और कैसे उन्होंने मुश्किलों को पार करते हुए बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई, इस पर एक नज़र डालते हैं।

मुंबई का सपना और शुरुआती संघर्ष – 19 साल की उम्र में, मनोज कुमार एक सपने को लेकर मुंबई आए थे। लेकिन मुंबई का सपना आसान नहीं था। कोई पहचान नहीं, कोई सिफ़ारिश नहीं, बस एक जुनून और कामयाबी का विश्वास। उन्हें भूखे सोना पड़ा, रिजेक्शन का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। स्टूडियो के चक्कर काटते-काटते, उन्होंने अपना आत्मविश्वास कभी कम नहीं होने दिया। धीरे-धीरे उन्हें छोटे-मोटे रोल मिलने लगे, और फिर मीना कुमारी जैसे बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। यह उनके करियर की शुरुआत थी, लेकिन अभी भी वे पूरी तरह से पहचाने नहीं गए थे।

पहली फिल्म और पहचान – मनोज कुमार की पहली फिल्म ‘फ़ैशन’ 1957 में आई थी। सिर्फ़ 19 साल की उम्र में उन्होंने 90 साल के भिखारी का किरदार निभाया था। यह उनके अभिनय कौशल की पहली झलक थी। हालांकि, असली पहचान उन्हें 1961 में आई फिल्म ‘कांच की गुड़िया’ से मिली। इस फिल्म में वे लीड रोल में थे और दर्शकों ने उन्हें खूब पसंद किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सफलता की सीढ़ियाँ – कांच की गुड़िया’ के बाद, मनोज कुमार ने कई यादगार फिल्में दीं, जैसे ‘पिया मिलन की आस’, ‘सुहाग सिंदूर’, ‘रेशमी रूमाल’, ‘शादी’, ‘डॉ. विद्या’, और ‘गृहस्थी’। इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बना ली। 1964 में आई राज खोसला की फिल्म ‘वो कौन थी?’ ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। इस फिल्म के गाने, जैसे ‘लग जा गले’ और ‘नैना बरसे रिमझिम’, आज भी लोगों के जुबां पर हैं। मनोज कुमार का करियर 40 सालों तक चला, और उन्होंने अभिनय के हर पहलू को छुआ। उनकी फिल्मों में दर्शक आसानी से जुड़ाव महसूस करते थे। यह उनकी सफलता का सबसे बड़ा राज था।

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