
पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया का मानना है कि नशे की जड़ें सिर्फ गलत संगत या उपलब्धता में नहीं, बल्कि उससे कहीं गहरी हैं। उन्होंने साफ कहा कि बेरोजगारी और युवाओं का खाली बैठे रहना ही असली वजहें हैं, जो उन्हें नशे की तरफ धकेलती हैं। उनका कहना है कि अगर युवाओं को काम के मौके मिलें, उन्हें जिम्मेदारी मिले और सकारात्मक दिशा में जोड़ा जाए, तो वे नशे जैसी बुराईयों से खुद ही दूर रहेंगे। रविवार को एक कार्यक्रम में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने ये बातें कहीं। उनका यह भी कहना था कि पंजाब सरकार की “युद्ध नशा विरोधी” मुहिम अब एक जन आंदोलन का रूप ले चुकी है, जिसमें लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इससे समाज में जागरूकता फैली है और लोग अब खुद आगे आकर इस समस्या के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। कटारिया का मानना है कि किसी भी बड़ी सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए सिर्फ सरकार की कोशिशें काफी नहीं होतीं। समाज के हर वर्ग को इसमें अपना योगदान देना चाहिए। हर इंसान को ये समझना होगा कि अगर हमारे घर, गांव या मोहल्ले में कोई नशे की चपेट में आ रहा है, तो सिर्फ वह नहीं, पूरा समाज कमजोर हो रहा है। इसलिए हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और नशा विरोधी इस अभियान में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।
गांव और मोहल्लों की समितियां बनें ड्रग्स के खिलाफ सबसे बड़ी ताकत – राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने गांव और वार्ड स्तर की रक्षा समितियों को संबोधित करते हुए एक अहम सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इन समितियों की भूमिका सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि नशे के खिलाफ लड़ाई में इन्हें अहम हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि ये समितियां अपने-अपने क्षेत्र में ड्रग्स की गतिविधियों को पहचानने में सबसे ज्यादा मददगार हो सकती हैं। चूंकि ये लोग स्थानीय होते हैं और हर गली, हर चेहरे को पहचानते हैं, इसलिए ये आसानी से पता लगा सकते हैं कि कौन संदिग्ध है और कहां कुछ गलत हो रहा है। राज्यपाल ने जिला प्रशासन से भी आग्रह किया कि इन समितियों को अधिकार दिए जाएं ताकि वे सिर्फ सूचना देने तक सीमित न रहें, बल्कि ठोस एक्शन भी ले सकें। इससे न केवल समय पर कार्रवाई संभव होगी, बल्कि यह एक सशक्त सामाजिक सुरक्षा तंत्र की तरह काम करेगा। इन समितियों की सक्रियता से पुलिस को भी बड़ी राहत मिल सकती है, क्योंकि लोकल जानकारी और फीडबैक बहुत बेशकीमती होते हैं। इस मौके पर डिप्टी कमिश्नर आशिका जैन ने राज्यपाल को बताया कि प्रशासन की ओर से पहले ही कई कदम उठाए जा चुके हैं। सरकारी और प्राइवेट डि-एडिक्शन सेंटर्स की क्षमता को बढ़ाया गया है। साथ ही, तीन नए OOAT (ओपिओइड ओरल थैरेपी) सेंटर्स खोले जा रहे हैं ताकि जरूरतमंदों को तुरंत मदद मिल सके।
पुलिस का सख्त ऐक्शन, 99 दिन में 16 हजार से ज्यादा ड्रग तस्कर दबोचे – इस मुहिम के तहत पंजाब पुलिस भी पूरे एक्शन मोड में है। रविवार को ही पुलिस ने एक दिन की बड़ी रेड के दौरान 144 ड्रग तस्करों को गिरफ्तार किया और उनके पास से 6.7 किलो हेरोइन और 440 किलो पोपी हस्क बरामद की गई। खास बात ये है कि “युद्ध नशा विरोधी” अभियान के शुरू होने के बाद सिर्फ 99 दिनों में पुलिस ने अब तक 16,492 ड्रग तस्करों को गिरफ्तार कर लिया है। स्पेशल डीजीपी (कानून और व्यवस्था) अर्पित शुक्ला ने बताया कि इस ऑपरेशन के लिए 200 से ज्यादा पुलिस टीमों को लगाया गया था, जिनमें 1,400 से ज्यादा जवान और 88 सीनियर ऑफिसर शामिल थे। इन टीमों ने एक ही दिन में राज्य भर में 479 जगहों पर छापेमारी की और 541 संदिग्ध लोगों से पूछताछ की। इसके अलावा 107 एफआईआर दर्ज की गईं, जिससे यह साफ है कि अब पुलिस सिर्फ दिखावे की कार्रवाई नहीं, बल्कि ठोस कदम उठा रही है। सरकार की रणनीति भी अब तीन स्तर पर चल रही है — एनफोर्समेंट (कानूनी कार्रवाई), डि-एडिक्शन (उपचार) और प्रिवेंशन (रोकथाम)। इसी के तहत रविवार को ही पुलिस ने 89 लोगों को डि-एडिक्शन और रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजा ताकि वे फिर से सामान्य जीवन में लौट सकें।
डि-एडिक्शन सेंटर का दौरा, राज्यपाल ने कैदियों से की बातचीत – राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने शहर के फतेहगढ़ इलाके में स्थित डि-एडिक्शन और रिहैबिलिटेशन सेंटर का भी दौरा किया। यहां उन्होंने नशे से जूझ रहे युवाओं से सीधे बातचीत की और उनकी कहानियां सुनीं। उन्होंने सेंटर में चल रहे वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम की जानकारी भी ली। इन प्रोग्राम्स का मकसद है कि नशे से बाहर आ रहे युवाओं को हुनर सिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए ताकि वे दोबारा उस रास्ते पर न लौटें। राज्यपाल ने यहां मौजूद अधिकारियों से आग्रह किया कि हर युवक को इस तरह की ट्रेनिंग जरूर दी जाए ताकि उनका आत्मविश्वास वापस लौटे और वे समाज में दोबारा सम्मान के साथ जी सकें। उन्होंने यह भी कहा कि परिवारों को भी चाहिए कि वे इन युवाओं को वापस अपनाएं और उन्हें नकारने की बजाय प्रोत्साहित करें, क्योंकि सामाजिक सहयोग के बिना पुनर्वास अधूरा है।
नशे के खिलाफ जंग सिर्फ सरकार की नहीं, हम सबकी है जिम्मेदारी – आखिर में ये समझना जरूरी है कि नशे के खिलाफ जंग सिर्फ सरकार, पुलिस या किसी एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं है। यह पूरे समाज की लड़ाई है और हर नागरिक को इसमें अपनी भूमिका निभानी होगी। अगर कोई नशे में फंस रहा है तो उसकी मदद करना, उसे सही रास्ते पर लाना और जरूरत पड़ने पर अधिकारियों को सूचना देना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया की बातों से एक बात तो बिल्कुल साफ हो जाती है — नशा सिर्फ एक मेडिकल या कानूनी मुद्दा नहीं है, ये सामाजिक चुनौती भी है। और इसका हल भी तभी मिलेगा जब हम सब मिलकर एक साथ खड़े होंगे। अगर आप इस मुहिम का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो अपने आस-पास नज़र रखें, संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी दें और अगर कोई नशे की चपेट में है, तो उसे सहारा दें। बदलाव तभी आएगा जब हम सब मिलकर इसे अपनी जंग मानेंगे।