बैसाखी पर ही रचा गया था खालसा का इतिहास, 2025 में फिर से याद करें पंच प्यारों की मिसाल

जलंधर: बैसाखी का त्योहार सिर्फ फसल काटने की शुरुआत का दिन नहीं है, बल्कि यह दिन सिख धर्म के इतिहास में भी बहुत खास और पावन माना जाता है। इसी दिन दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब की पवित्र धरती पर खालसा पंथ की स्थापना करके धर्म के इतिहास में एक अमिट अध्याय जोड़ दिया था। ये सिर्फ एक घटना नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक क्रांति की चिंगारी थी, जिसने डर, मोह और अन्याय के खिलाफ हमेशा जलती रहने वाली रौशनी की मशाल जला दी। बैसाखी वाले दिन गुरुजी ने मांगे थे पाँच शीश बैसाखी 1699 के दिन गुरुजी ने एक विशाल सभा के बीच खड़े होकर पाँच सिर (शीश) माँगे थे। उस समय कुछ पल के लिए माहौल शांत हो गया, लेकिन फिर एक-एक करके पाँच सिख सामने आए और उन्होंने अपनी जान तक देने को तैयार होने का साहस दिखाया। यही पाँच सिख ‘पंच प्यारे’ कहलाए और खालसा पंथ की पहली रौशनी बने। इन्होंने दुनिया को ये दिखा दिया कि गुरु का रास्ता सिर्फ तलवार या ताकत पर नहीं चलता, बल्कि बलिदान, पवित्रता और सच्चाई की नींव पर टिका होता है। ‘पंच प्यारे’ के नामों में छिपा है सच्चा भक्ति-मार्ग इन ‘पंच प्यारों’ के नामों में ही जीवन की असली साधना छिपी है। खालसा की स्थापना का ये पावन दिन हमें ये सिखाता है कि अगर हम भी इन पंच प्यारे जैसे गुणों को अपनाएं, तो गुरु की कृपा और खालसे की महिमा हमारे भीतर उतर सकती है।
- भाई दया सिंह:
जिनके नाम में ही ‘दया’ है, वे हमें सिखाते हैं कि हर आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करुणा से होती है। जब तक दूसरों के दुख को महसूस करने की भावना हमारे अंदर नहीं आती, तब तक हमारी साधना अधूरी है। दया वो बीज है जिससे हर धर्म की जड़ें उगती हैं। - भाई धर्म सिंह:
जिस दिल में दया होती है, वहीं धर्म पनपता है। धर्म कोई रीति-रिवाज नहीं, बल्कि एक जीवंत आचरण है जो सच्चाई, ईमानदारी और सेवा से जुड़ा होता है। भाई धर्म सिंह हमें यह समझाते हैं कि धर्म के रास्ते पर चलकर ही जीवन का असली मकसद समझ में आता है। - भाई हिमत सिंह:
जब मन दया और धर्म से भर जाता है, तो वह खुद-ब-खुद हिम्मत के रास्ते पर चल पड़ता है। भाई हिमत सिंह उस साहस का प्रतीक हैं जो अन्याय, अत्याचार और डर के सामने खड़ा हो जाता है – चाहे पूरी दुनिया उसके खिलाफ क्यों न हो। - भाई मोहतम सिंह:
जब दया, धर्म और हिम्मत हमारे भीतर जम जाएं, तब मोह से स्वतः ही मुक्ति मिलती है। भाई मोहतम सिंह दिखाते हैं कि जब कोई साधक दुनिया की चाह से ऊपर उठता है, तब वह अंदर की असली खुशी से जुड़ता है। - भाई साहिब सिंह:
आख़िर में जब मोह भी छूट जाता है, तब आत्मा की मुलाकात ‘साहिब’ यानी परमात्मा से होती है। भाई साहिब सिंह उस अंतिम अवस्था के प्रतीक हैं जहाँ आत्मा खुद को प्रभु में समर्पित कर देती है।