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सुप्रीम कोर्ट ने मंदसौर केस में फिर से ट्रायल का दिया आदेश, फांसी की सजा रद्द

मंदसौर, मध्य प्रदेश: साल 2018 में मंदसौर में 8 साल की मासूम बच्ची के साथ हुए जघन्य अपराध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस मामले में दोषी करार दिए गए आरोपियों की फांसी की सजा को फिलहाल रद्द करते हुए केस को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने कहा कि निचली अदालत ने फैसला सुनाते समय कई महत्वपूर्ण तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया और मुकदमे में जल्दबाजी की गई। फैसले में जल्दबाजी, वैज्ञानिक जांच पर सवाल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि ट्रायल कोर्ट ने वैज्ञानिक जांच और विशेषज्ञों की गवाही पर गौर नहीं किया। केवल डीएनए रिपोर्ट के आधार पर फैसला सुना देना न्याय प्रक्रिया में गंभीर खामी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपियों को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त मौका नहीं दिया गया और महज दो महीने से भी कम समय में मुकदमे की सुनवाई पूरी कर दी गई, जबकि मौत की सजा जैसे गंभीर मामलों में पूरी सावधानी जरूरी होती है। चार महीने में होगी दोबारा सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अब इस मामले की फिर से सुनवाई की जाएगी, जिसमें वैज्ञानिक विशेषज्ञों की गवाही और अन्य महत्वपूर्ण सबूतों को शामिल किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि डीएनए रिपोर्ट तैयार करने वाले विशेषज्ञों को अदालत में गवाही के लिए बुलाया जाए और बचाव पक्ष को उनसे जिरह करने का पूरा अवसर दिया जाए।

इसके अलावा, अगर आरोपियों को अपनी पसंद का वकील नहीं मिलता है, तो पर्याप्त अनुभव वाले किसी वकील को उनकी ओर से नियुक्त किया जाए। साथ ही, सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपियों के नए बयान दर्ज किए जाएं और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ट्रायल कोर्ट नए सिरे से फैसला ले। घटना जिसने झकझोर दिया था पूरा देश यह दिल दहला देने वाली घटना **26 जून 2018** की है, जब मंदसौर में तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली 8 साल की बच्ची को किडनैप कर दो आरोपियों ने जंगल में ले जाकर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। इसके बाद उन्होंने उसकी गर्दन पर चाकू से हमला किया और मरा समझकर वहां से भाग गए। अगले दिन बच्ची लहूलुहान हालत में मिली, जिसके बाद पुलिस ने उसे इंदौर के एमवायएच अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों के लंबे इलाज के बाद उसकी जान बचाई जा सकी। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणाएं घटना के बाद प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद अस्पताल पहुंचे थे और बच्ची के परिवार को हरसंभव मदद देने का ऐलान किया था। उन्होंने परिवार को इंदौर में घर, खजराना मंदिर में दुकान और बच्ची की पूरी पढ़ाई का खर्च सरकार द्वारा उठाने की घोषणा की थी। 55 दिनों में आया था फैसला इस मामले में पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष अदालत ने सिर्फ 55 दिनों में मुकदमे की सुनवाई पूरी कर 21 अगस्त 2018 को आरोपियों आसिफ खान और इरफान मेव को फांसी की सजा सुनाई थी। विशेष न्यायाधीश निशा गुप्ता ने आरोपियों को **आईपीसी की धारा 363, 366, 307 और 376 (डी) बी के तहत अलग-अलग सजाएं सुनाई थीं, जिनमें 7 से 10 साल की जेल, आजीवन कारावास और फांसी की सजा शामिल थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा और तब से दोनों आरोपी **उज्जैन की केंद्रीय जेल में बंद हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा सुनवाई का आदेश दिया है, जिससे इस मामले में एक नया मोड़ आ गया है।

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