लाइफ स्टाइल

खानपान ही नहीं प्रदूषण भी बढ़ा रहा है आर्थराइटिस का खतरा

आर्थराइटिस यानी जोड़ों में सूजन-दर्द की समस्या अब केवल बुजर्गों की बीमारी नहीं रह गई है

वेब-डेस्क :- आर्थराइटिस यानी जोड़ों में सूजन-दर्द की समस्या अब केवल बुजर्गों की बीमारी नहीं रह गई है, कम उम्र के लोग भी तेजी से इसकी चपेट में आते दिख रहे हैं। आमतौर पर इसके पीछे खान-पान और लाइफस्टाइल में गड़बड़ी, बढ़ती शारीरिक निष्क्रियता या मोटापे को इसका कारण माना जाता रहा है। हालांकि हालिया शोध में कुछ नई और चौंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि सिर्फ खान-पान और दिनचर्या की गड़बड़ी ही नहीं, बढ़ता प्रदूषण भी आर्थराइटिस के खतरे को बढ़ाता जा रहा है।

क्या आप भी जोड़ों में अक्सर बने रहने वाले दर्द-जकड़न से परेशान रहते हैं? अगर हां तो समय रहते डॉक्टर से इस बारे में सलाह ले लें। हड्डियों और जोड़ों की ये समस्या आपके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली हो सकती है।

सेहत के लिए होना होगा अब और भी सावधान
एक हालिया अध्ययन की रिपोर्ट में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि आर्थराइटिस सिर्फ उम्र का नहीं, अब पर्यावरणीय बदलावों का भी नतीजा बनता जा रहा है इसलिए सेहत की सुरक्षा के लिए हमें और भी सावधान हो जाना चाहिए। आइए समझते हैं कि अब तक फेफड़ों की बीमारियों का कारण माना जाने वाला वायु प्रदूषण किस तरह से हड्डियों और जोड़ों के लिए दिक्कतें बढ़ाता जा रहा है?

प्रदूषण के कारण बढ़ रहा है रूमेटाइड आर्थराइटिस का खतरा
आर्थराइटिस-गठिया रोग के दूरगामी प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इस रोग से बचाव को लेकर लोगों को अलर्ट करने के उद्देश्य से हर साल 12 अक्तूबर को वर्ल्ड आर्थराइटिस डे (विश्व गठिया दिवस) मनाया जाता है। विशेषज्ञों ने एक रिपोर्ट में कहा कि वायु प्रदूषण वैश्विक स्तर पर बड़ा खतरा है और ये चुपचाप रूमेटाइड आर्थराइटिस को बढ़ावा दे रहा है, जिसके चलते एक नया स्वास्थ्य संकट उभर रहा है।

गौरतलब है कि वायु प्रदूषण को लेकर कई रिपोर्ट्स में चिंता जताई जाती रही है। दिल्ली-एनसीआर जैसे क्षेत्रों में प्रदूषण तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते लोगों की औसत उम्र कम होने को लेकर भी अलर्ट किया जाता रहा है। अब विशेषज्ञ प्रदूषण के कारण आर्थराइटिस को खतरे को लेकर अलर्ट कर रहे हैं।

रूमेटॉइड आर्थराइटिस और इसके जोखिम कारक
अध्ययन में वायु प्रदूषण के कारण रूमेटाइड आर्थराइटिस के जोखिमों को लेकर अलर्ट किया गया है। रूमेटॉइड आर्थराइटिस एक दीर्घकालिक ऑटोइम्यून बीमारी है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा गलती से जोड़ों के ऊतकों पर हमला करने के कारण होती है, इसके कारण भी दर्द, सूजन और अकड़न जैसी दिक्कतें होती हैं।

9-12 अक्तूबर तक आयोजित भारतीय रुमेटोलॉजी एसोसिएशन (IRACON 2025) के 40वें वार्षिक सम्मेलन में प्रमुख विशेषज्ञों ने अपने निष्कर्ष साझा किए, जिनसे पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर की बिगड़ती वायु गुणवत्ता और पीएम2.5 का प्रदूषण रूमेटॉइड आर्थराइटिस के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि का कारण हो सकता है।

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
भारत की लगभग 1% वयस्क आबादी पहले से ही रूमेटाइड आर्थराइटिस से पीड़ित है, लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि दिल्ली-एनसीआर जैसे प्रदूषित क्षेत्रों में जल्द ही इसकी दरें और भी अधिक बढ़ सकती हैं।

रूमेटाइड आर्थराइटिस को लंबे समय से आनुवंशिक और प्रतिरक्षा कारकों से जोड़ा जाता रहा है। शोधकर्ता अब इसी क्रम में विषाक्त हवा जैसे पर्यावरणीय स्थितियों को भी इसका ट्रिगर बता रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, हम ऐसे व्यक्तियों में भी इस प्रकार के आर्थराइटिस के अधिक मामले देख रहे हैं जिनका ऑटोइम्यून रोग का कोई पारिवारिक इतिहास या आनुवंशिक जोखिम नहीं है। जब इसके कारणों को समझने की कोशिश की गई तो पता चलता है कि इनमें से अधिकतर लोग अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रहते हैं। अधिकांश मरीज 20-50 आयु वर्ग के हैं।

दिल्ली जैसे शहरों में खतरा और भी अधिक
एक हालिया अध्ययन की रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा कि दुनिया के शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से दिल्ली शीर्ष स्थानों में से एक है। यहां लोगों में आने वाले दिनों में इस रोग का खतरा बढ़ सकता है।
यूरोप, चीन और अब भारत में हुए अध्ययनों से पता चलता है कि सूक्ष्मकण पीएम 2.5 फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर जाता है और हृदय और फेफड़ों की बीमारियों के साथ ऑटोइम्यून रोगों के खतरे को भी बढ़ाता जा रहा है। प्रदूषण से बचाव करना संपूर्ण स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए जरुरी है।

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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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