उत्तराखण्ड

महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता: उपराष्ट्रपति

देहरादून। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नौ अगस्त को एक स्वास्थ्य योद्धा के खिलाफ की गई हिंसा को चरम क्रूरता करार दिया। इसे पूरी मानवता को शर्मसार करने वाला बताया। रविवार को एआईएमएस ऋषिकेश में छात्रों व संकाय सदस्यों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे क्रूर कृत्य पूरी मानव सभ्यता को शर्मिंदा करते हैं और भारत के आदर्शों को तहस-नहस कर देते हैं।
उपराष्ट्रपति ने इस घटना के संदर्भ में कुछ लोगों के ‘लक्षणात्मक विकृति’ शब्द के उपयोग पर अफसोस जताते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां हमारे दर्द को और बढ़ाती हैं और हमारी घायल अंतरात्मा पर नमक छिड़कती हैं। कहा कि जब मानवता को शर्मिंदा किया जाता है, तो कुछ आवाजें होती हैं, जो चिंता का कारण बनती हैं। वे केवल हमारे दर्द को और बढ़ाती हैं। सीधे शब्दों में कहें तो वे हमारी घायल अंतरात्मा पर नमक छिड़क रही हैं। जब यह बातें संसद के सदस्य, वरिष्ठ वकील से आती हैं, तो यह अत्यधिक दोषपूर्ण होती हैं। ऐसे भयंकर विचारों के लिए कोई बहाना नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि मैं ऐसी गलतफहमी में पड़े लोगों से पुनः विचार करने और सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आह्वान करता हूं। यह ऐसा अवसर नहीं है, जहां आप राजनीतिक दृष्टिकोण से देख रहे हैं। यह राजनीतिक दृष्टिकोण खतरनाक होता है, यह आपकी वस्तुनिष्ठता को मारता है।
उपराष्ट्रपति ने डॉक्टरों के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा की निंदा की। उन्होेंने स्वास्थ्य पेशेवरों के काम को ‘निष्काम सेवा’ बताया। डॉक्टरों की सुरक्षा के प्रति चिंता जताते हुए उन्होंने एक ऐसा तंत्र बनाने पर जोर दिया, जिसमें स्वास्थ्य योद्धाओं को पूरी तरह सुरक्षित रखा जा सके। उन्होंने समाज की जिम्मेदारी को उजागर करते हुए महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराने के लिए एक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि जो कुछ भी हुआ, वह जवाबदेही के दायरे में आएगा लेकिन समाज भी जिम्मेदार है। समाज अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। मैं इसे सरकार या राजनीतिक पार्टियों का मामला नहीं बनाना चाहता। यह समाज का मामला है, यह हमारे अस्तित्व की चुनौती है। इसने हमारे अस्तित्व की नींव को हिला दिया है। इसने भारत के आदर्शों को सवाल किया है जो हजारों वर्षों से कायम हैं। इस दौरान डॉ सुदेश धनखड़, राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) एवं निदेशक एम्स ऋषिकेश प्रो. मीनू सिंह आदि मौजूद रहे।
सुनिश्चित की जानी चाहिए स्वास्थ्य योद्धाओं की सुरक्षा
उप राष्ट्रपति ने कहा कि एक डाक्टर केवल एक सीमा तक ही मदद कर सकता है। डाक्टर खुद को भगवान में नहीं बदल सकता। वह भगवान के करीब है, इसलिए जब कोई व्यक्ति की मृत्यु होती है, भावनात्मक और अनियंत्रित भावनाओं के कारण डाक्टरों को वह व्यवहार नहीं मिलता जिसके वे हकदार हैं। डॉक्टरों, नर्सों, कंपाउंडर्स और स्वास्थ्य योद्धाओं की सुरक्षा पूरी तरह से सुनिश्चित की जानी चाहिए।
अपराधियों की दोषपूर्णता से भी बदतर एनजीओ का मौन
एनजीओ के चयनात्मक मौन की आलोचना करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि कुछ एनजीओ एक घटना पर चुप्पी साध लेते हैं। हमें उनसे सवाल करना चाहिए। उनकी चुप्पी इस घिनौनी अपराध के अपराधियों की दोषपूर्णता से भी बदतर है। जो लोग राजनीति खेलना और राजनीतिक अंक जुटाना चाहते हैं, वे अपनी अंतरात्मा की पुकार का जवाब नहीं दे रहे।

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