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अश्लीलता वाली फिल्मों की मंजूरी पर जावेद अख्तर ने उठाया सवाल

मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। हाल ही में उन्होंने फिल्मों की सेंसरशिप पर बात रखी है।

वेब-डेस्क :- मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। हाल ही में उन्होंने फिल्मों की सेंसरशिप पर बात रखी है। उन्होंने इस बात पर निराशा जताई है कि समाज की वास्तविकता को दर्शाने वाली फिल्मों को भारत में सेंसरशिप का सामना करना पड़ता है, जबकि अश्लीलता से भरपूर फिल्मों को मंजूरी मिल जाती है।

अश्लील फिल्मों को मिलती है मंजूरी
शुक्रवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए, अख्तर ने कहा कि खराब दर्शक ही एक खराब फिल्म को सफल बनाते हैं। अनंतरंग 2025 के प्रोग्राम में बोलते हुए उन्होंने कहा ‘इस देश में, सच्चाई यह है कि अश्लीलता को (फिल्म नियामक संस्थाओं से) मंजूरी मिल जाती है। उन्हें पता ही नहीं है कि ये गलत मूल्य हैं, एक पुरुषवादी दृष्टिकोण है जो महिलाओं को अपमानित करता है। जो चीजें समाज को आईना दिखाती हैं, उन्हें मंजूरी नहीं मिलती।’

फिल्में समाज की खिड़की
जावेद अख्तर ने कहा ‘फिल्म समाज की एक खिड़की होती है, जिससे आप झांकते हैं, फिर खिड़की बंद कर देते हैं, लेकिन खिड़की बंद करने से जो हो रहा है, वह ठीक नहीं हो जाएगा।’
उन्होंने कहा ‘पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य की वजह से ही ऐसी फिल्में बन रही हैं। अगर पुरुषों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो जाए, तो ऐसी फिल्में नहीं बनेंगी। अगर बन भी जाएंगी तो (सिनेमाघरों में) नहीं चलेंगी।’

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अख्तर ने जताई हैरानी
अख्तर ने सिनेमा में ‘अश्लील’ गानों के बढ़ते चलन पर अपनी नाराजगी जाहिर की और कहा कि उन्होंने ऐसे प्रस्तावों को लगातार ठुकराया है क्योंकि ये उनके मूल्यों के अनुरूप नहीं हैं।

उन्होंने कहा ‘एक समय था, खासकर 80 के दशक में, जब गाने या तो दोहरे अर्थ वाले होते थे या फिर बेमतलब लेकिन मैं ऐसी फिल्में नहीं करता था। मुझे इस बात का दुख नहीं है कि लोगों ने ऐसे गाने रिकॉर्ड करके फिल्मों में डाले, बल्कि मुझे इस बात का दुख है कि ये गाने सुपरहिट हो गए। इसलिए फिल्म पर दर्शकों का ही प्रभाव होता है।

समाज को ठहराया जिम्मेदार
अख्तर ने कहा ‘मैंने कई माता-पिता को बड़े गर्व से कहते सुना है कि उनकी आठ साल की बेटी ‘चोली के पीछे क्या है’ गाने पर बहुत अच्छा नाचती है। अगर ये समाज के मूल्य हैं, तो आप बनने वाले गानों और फिल्मों से क्या उम्मीद करते हैं? तो, समाज जिम्मेदार है, सिनेमा तो बस एक अभिव्यक्ति है।’

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