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क्या मध्यप्रदेश विधानसभा में बढ़ रही है कानून-व्यवस्था पर टकराहट?

 मध्य प्रदेश विधानसभा: गरमागरम बहसों से सियासी पारा हाई!-मध्य प्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होते ही कई अहम मुद्दों पर बहस छिड़ गई है। कांग्रेस ने सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं, वहीं जनता से जुड़े कई मुद्दों पर भी चर्चा हुई है। आइए, विस्तार से जानते हैं।

 कांग्रेस का आरोप: विधायकों पर राजनीतिक दबाव?-कांग्रेस ने विधानसभा में जमकर हंगामा किया और सरकार पर आरोप लगाया कि विधायकों और उनके परिवारों पर राजनीतिक दबाव बनाने के लिए झूठे केस दर्ज किए जा रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष, उमंग सिंघार ने विधायक सेना पटेल, अभय मिश्रा और आरिफ मसूद के नामों का जिक्र करते हुए कहा कि ये नेता जानबूझकर परेशान किए जा रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि यह सरकार का एक सुनियोजित षड्यंत्र है, जिससे विपक्ष के नेताओं को डराया-धमकाया जा सके। इस मुद्दे पर सदन में काफी हंगामा हुआ और कांग्रेस ने सरकार के रवैये के विरोध में वॉकआउट भी किया। यह घटना साफ तौर पर दिखाती है कि विधानसभा में सत्ताधारी दल और विपक्ष के बीच कितना तनाव है और राजनीतिक माहौल कितना गरमाया हुआ है।

 15 साल पुराना फरार आरोपी: पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल-कांग्रेस विधायक चंदा गौर ने छतरपुर पुलिस लाइन के एक 15 साल से फरार आरोपी के मामले को उठाया। उन्होंने सवाल किया कि इतने सालों तक आरोपी को पकड़ा क्यों नहीं गया? यह सवाल पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है और जनता में सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा करता है। हालांकि, मंत्री शिवाजी पटेल ने बताया कि आरोपी पर 8000 रुपये का इनाम रखा गया है और उसकी तलाश जारी है। लेकिन, इतने सालों तक आरोपी का फरार रहना पुलिस की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान लगाता है और जनता के बीच अविश्वास बढ़ाता है। इस मामले में पारदर्शिता और जवाबदेही की ज़रूरत है ताकि जनता का विश्वास पुलिस में फिर से कायम हो सके।

श्रमिकों का वेतन: लंबित भुगतान का मुद्दा-सहकारी सूत मिल के श्रमिकों के लंबित वेतन का मुद्दा भी विधानसभा में छाया रहा। बीजेपी विधायक अर्चना चिटनीस ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि श्रमिकों को लंबे समय से उनका हक़ नहीं मिल पा रहा है। मंत्री चेतन्य कुमार कश्यप ने बताया कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है जो श्रमिकों की सूची तैयार कर रही है और जल्द ही भुगतान शुरू हो जाएगा। लेकिन, श्रमिकों के लिए यह लंबा इंतज़ार बेहद मुश्किल भरा है। सरकार को इस मामले में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और श्रमिकों को उनका हक़ दिलाना चाहिए। यह घटना श्रमिकों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा करती है और सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठाती है।

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