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होलिका दहन: बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न!

होली से पहले का ये धमाका: होलिका दहन!

होली का त्योहार तो रंगों का त्योहार है, लेकिन ये रंगों का त्योहार शुरू होता है होलिका दहन से! ये सिर्फ एक आग जलाने की रस्म नहीं है, इसमें एक कहानी छिपी है, एक बहुत ही खास कहानी। होलिका दहन का नाम होलिका, हिरण्यकश्यप की बहन, और “दहन” जो जलने का मतलब होता है, से जुड़ा है। कहानी ये है कि हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद को मारना चाहता था, और इसके लिए उसने अपनी बहन होलिका की मदद मांगी।

होलिका दहन: बुराई का नाश, अच्छाई की जीत

होलिका को भगवान विष्णु ने एक खास कपड़ा दिया था जो उसे आग से बचा सकता था। होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठने की कोशिश की, लेकिन भगवान के आशीर्वाद से प्रह्लाद बच गए। होलिका जल गई और ये घटना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बनी।

होलिका दहन: एक त्योहार और एक वैज्ञानिक कारण

होली मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। कहा जाता है कि होली का त्योहार ऐसे समय में आता है जब मौसम ठंड से गर्मी में बदलता है, और इस बदलाव के कारण लोगों को थकान और आलस्य महसूस होता है। इस थकान को दूर करने के लिए लोग ऊंची आवाज में गाते और बोलते हैं और इससे शरीर को नई ऊर्जा मिलती है और आलस्य दूर होता है।

होलिका दहन: एक रस्म जो सबको जोड़ती है

होलिका दहन उत्तर भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। रात में होलिका दहन के लिए जगहें तय की जाती हैं और लकड़ी, झाड़ियाँ, गोबर और अन्य जलाने वाली सामग्री इकट्ठा की जाती है। युवा इस काम में बहुत उत्साहित होते हैं और होली के त्योहार को और भी खुशियों से मनाने की योजना बनाते हैं। किसान अपने खेतों और फसलों में अपना उत्साह दिखाते हैं।

होलिका दहन: शुभकामनाओं और नई शुरुआत का प्रतीक

होलिका दहन के दौरान, लोग आग में उबटन फेंकते हैं जो एक प्रकार का पेस्ट होता है। ऐसा माना जाता है कि यह लोगों को साल भर रोग मुक्त रखता है। फिर होलिका की राख का उपयोग माथे पर तिलक लगाने के लिए किया जाता है और फिर निश्चित रूप से अगले दिन के भव्य समारोह की तैयारी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन की अग्नि नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है और नई शुरुआत का रास्ता खोलती है।

होलिका दहन: एक पर्व जो सबको एक करता है

होली एक ऐसा पर्व है जो लोगों को भेदभाव को भुलाकर प्रेम और सौहार्द्र को बढ़ावा देने का संदेश देती है। होलिका दहन की परंपरा भक्त प्रह्लाद और उसके दुष्ट पिता राजा हिरण्यकशिपु से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था, जबकि उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन जब वह असफल रहा, तो उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई। इस घटना की स्मृति में प्रतिवर्ष होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।

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