
देवभूमि उत्तराखंड: जहाँ हर कण में बसता है ईश्वर का वास-उत्तराखंड, जिसे प्यार से ‘देवभूमि’ कहा जाता है, सचमुच ईश्वर का निवास स्थान है। ऊँचे-ऊँचे हिमालय की चोटियाँ, घने जंगल, कलकल बहती पवित्र नदियाँ और शांत वादियों का यह संगम स्थल हमेशा से ही अध्यात्म और भक्ति का केंद्र रहा है। ऐसी मान्यता है कि यहीं पर देवताओं ने विचरण किया, ऋषि-मुनियों ने कठिन तपस्याएं कीं और धर्म की रक्षा के लिए भगवान ने अवतार लिए। हमारी पवित्र गंगा और यमुना नदियाँ भी इसी पावन धरती से निकलती हैं। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे चारों धामों की यात्रा के लिए हर साल लाखों लोग आते हैं। पर उत्तराखंड की धार्मिक पहचान सिर्फ इन चार धामों तक ही सीमित नहीं है। यहाँ के हर जिले, हर गाँव में देवी-देवताओं के ऐसे मंदिर हैं जो हमारी संस्कृति, परंपराओं और गहरी आस्था का अहम हिस्सा हैं। ये मंदिर सिर्फ ईंट-पत्थर के ढांचे नहीं, बल्कि जीवंत आस्था के प्रतीक हैं, जहाँ भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और सुकून पाते हैं।
सुरकंडा देवी मंदिर: जहाँ गिरी थी सती की शिरोरेखा-समुद्र तल से करीब 2,757 मीटर की ऊँचाई पर, धनोल्टी-चंबा मार्ग पर स्थित सुरकंडा देवी मंदिर एक बेहद महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है। ऐसी मान्यता है कि जब देवी सती ने अपने पिता के यज्ञ में कूदकर आत्मदाह किया था, तब उनका सिर इसी स्थान पर गिरा था। यही वजह है कि इसे एक सिद्ध शक्तिपीठ माना जाता है। स्थानीय लोगों का गहरा विश्वास है कि यहाँ आकर सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से ज्ञान, बुद्धि में वृद्धि होती है और जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। हर साल नवरात्रि और गंगा दशहरा के पावन अवसर पर यहाँ एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से भक्त माता के दर्शन और आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। मंदिर की वास्तुकला और आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य भी मन मोह लेता है, जो इसे एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
चंद्रबदनी देवी मंदिर: हृदय की पवित्रता का प्रतीक-देवप्रयाग के पास एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित चंद्रबदनी देवी मंदिर भी एक प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ देवी सती का हृदय गिरा था। इस मंदिर की एक खास बात यह है कि यहाँ देवी की कोई प्रतिमा नहीं है। इसके बजाय, एक चाँदी की छतरी और एक प्राचीन यज्ञकुंड को ही देवी का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। श्रद्धालु यहाँ आकर अपने मन को पवित्र करने और जीवन में प्रेम व करुणा का संचार करने की प्रार्थना करते हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में यहाँ विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान किए जाते हैं, जो भक्तों के लिए एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव लेकर आते हैं। यह स्थान मन को शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
कूनजा देवी मंदिर: एकांत में शक्ति का वास-लगभग 2,000 मीटर की ऊँचाई पर, घने जंगलों के बीच बसा कूनजा देवी मंदिर माता दुर्गा की साधना और तपस्या का एक पवित्र स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ माता ने घोर तपस्या की थी। यहाँ की हवाओं में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा महसूस होती है, जो यहाँ आने वाले साधकों को गहरी आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराती है। विशेषकर महिलाएँ अपने परिवार की सुरक्षा और खुशहाली के लिए यहाँ आकर माता से प्रार्थना करती हैं। यह मंदिर प्रकृति की गोद में स्थित है, जहाँ आकर मन को सुकून मिलता है और जीवन की भागदौड़ से कुछ पल का विश्राम मिलता है।
कोटि देवी मंदिर: हज़ारों साल पुरानी आस्था का गवाह-टिहरी जनपद में स्थित कोटि देवी मंदिर अपनी प्राचीनता और अटूट आस्था के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह वह पवित्र स्थान है जहाँ देवी ने कई राक्षसों का वध कर धर्म की स्थापना की थी। स्थानीय लोग आज भी इस मंदिर को ‘संकट हरणी’ मानते हैं, यानी सभी कष्टों को दूर करने वाली देवी। यहाँ आकर पूजा करने से भक्तों के जीवन से परेशानियाँ दूर होती हैं। नवरात्रि के दौरान यहाँ एक भव्य मेला लगता है, जिसमें देश के कोने-कोने से भक्त माता के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। मंदिर का वातावरण श्रद्धा और विश्वास से ओत-प्रोत रहता है।
अंबा माता और धारी देवी: कुलदेवी और चारधाम की रक्षक-टिहरी और गढ़वाल के कई गाँवों में अंबा माता और धारी देवी के मंदिर आस्था के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। अंबा माता को शक्ति का साक्षात रूप माना जाता है और विशेष रूप से महिलाएँ अपने परिवार के कल्याण के लिए उनकी पूजा करती हैं। वहीं, धारी देवी को चारधाम की संरक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर की सबसे अनूठी बात यह है कि धारी देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है – सुबह एक कन्या के रूप में, दोपहर में एक युवती के रूप में और शाम को एक वृद्ध महिला के रूप में। यह मंदिर भक्तों को हर तरह के संकटों से बचाने वाला माना जाता है, और लोग यहाँ आकर अपनी सुरक्षा की कामना करते हैं।
माँ दुध्याड़ी देवी मंदिर: आस्था और चमत्कारों का संगम-गढ़वाल क्षेत्र की खूबसूरत पहाड़ियों के बीच, पैदल यात्रा के पश्चात ही पहुँचा जा सकने वाला माँ दुध्याड़ी देवी का मंदिर भक्तों के दिलों में एक खास जगह रखता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, देवी ने इसी स्थान पर कई राक्षसों का संहार किया था और अपने भक्तों को दूध जैसी पवित्र धाराओं से आशीर्वाद दिया था। नवरात्रि के पावन अवसर पर यहाँ विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और जागरण का आयोजन होता है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में माता स्वयं प्रकट होकर अपने भक्तों को दर्शन देकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। यह मंदिर आस्था और चमत्कारों का एक ऐसा संगम है जहाँ भक्त पूरी श्रद्धा से आते हैं।




