व्यापार

Private Employees के लिए बड़ी खबर: क्या अब 1 साल की नौकरी पर भी मिलेगी ग्रेच्युटी? जानें

New Labour Codes: केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नए लेबर कोड्स (New Labour Codes) ने देश के करोड़ों प्राइवेट सेक्टर कर्मचारियों के बीच एक नई उम्मीद जगाई है। सबसे बड़ा बदलाव ग्रेच्युटी (Gratuity) के नियमों में है जो अब तक कर्मचारियों के लिए एक लंबी प्रतीक्षा का विषय रहा है। हालांकि कागजों पर बदलाव के बावजूद जमीन पर अभी भी पुराने नियम ही चल रहे हैं।

ग्रेच्युटी का नया नियम: 5 साल बनाम 1 साल

वर्तमान में लागू ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के अनुसार किसी भी कर्मचारी को ग्रेच्युटी पाने के लिए एक ही कंपनी में लगातार 5 साल की सेवा पूरी करना अनिवार्य है। नए लेबर कोड्स के तहत फिक्स्ड टर्म (अनुबंध आधारित) कर्मचारियों के लिए इस समय सीमा को घटाकर महज 1 साल करने का प्रावधान है। केंद्र सरकार का लक्ष्य सोशल सिक्योरिटी (सामाजिक सुरक्षा) के दायरे को बढ़ाना है ताकि छोटी अवधि तक काम करने वाले युवाओं को भी वित्तीय लाभ मिल सके।

नियम लागू होने में देरी क्यों?

लाखों कर्मचारी पूछ रहे हैं कि जब कानून बन गया है तो कंपनियां लाभ क्यों नहीं दे रहीं? इसकी मुख्य वजह भारत का संवैधानिक ढांचा है:

    1. कानूनी बाध्यता की कमी: जब तक राज्य सरकारें अपने नए लेबर नियमों को आधिकारिक तौर पर जारी नहीं करतीं तब तक कंपनियां नए कोड्स को मानने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं।

      समवर्ती सूची (Concurrent List): लेबर कानून समवर्ती सूची में आते हैं। इसका मतलब है कि केंद्र और राज्य दोनों को इस पर कानून बनाने का अधिकार है। केंद्र ने कोड्स पारित कर दिए हैं लेकिन इन्हें लागू करने के लिए हर राज्य सरकार को अपने नियम अलग से नोटिफाई (अधिसूचित) करने होंगे।

    कंपनियां क्यों कतरा रही हैं?

    ज्यादातर कंपनियां अभी भी पुराने 5 साल वाले नियम को ही फॉलो कर रही हैं। इसके पीछे उनके अपने तर्क हैं:

    • ऑडिट और जांच का डर: स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बिना नियम बदलने पर कंपनियों को भविष्य में ऑडिट या कानूनी विवादों का सामना करना पड़ सकता है।
    • लागत में वृद्धि: 1 साल में ग्रेच्युटी देने से कंपनियों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा जिससे वे फिलहाल बचना चाहती हैं।

    राज्यों की सुस्ती के पीछे का कारण

    राज्य सरकारें इस मामले में बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। इसके पीछे कई राजनीतिक और सामाजिक कारण हैं:

    • ट्रेड यूनियनों का विरोध: कई श्रमिक संगठन कुछ प्रावधानों को लेकर असहमत हैं।
    • MSME सेक्टर की चिंता: छोटे उद्योगों का मानना है कि नए नियम उनकी लागत बढ़ा देंगे जिससे व्यापार करना मुश्किल होगा।
    • चर्चा का दौर: हालांकि कुछ राज्यों ने ड्राफ्ट तैयार कर लिया है लेकिन अधिकांश राज्यों में अभी भी हितधारकों (Stakeholders) के साथ बातचीत चल रही है।

Related Articles

Back to top button