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योगी सरकार की फर्जी शिक्षकों पर चोट: सही फैसला, लेकिन सवाल वही!

फर्जीवाड़े की कहानी और सिस्टम की कमजोरी
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने फर्जी दस्तावेजों से नौकरी हथियाने वाले शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखाने का फैसला लिया है, और ये कदम सही दिशा में लगता है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ये लोग इतने सालों तक नौकरी कैसे करते रहे? ऐसा तो नहीं कि ये बस चंद लोग हों—2019 में एसआईटी ने 4000 से ज्यादा फर्जी शिक्षकों को पकड़ा था। इस ब्लॉग में हम इस बात को समझेंगे कि ये फर्जीवाड़ा इतने साल कैसे चलता रहा और अब सरकार क्या प्लान कर रही है। निकालने के साथ वेतन वसूलने की बात हो रही है, पर क्या ये सच में हो पाएगा? और जिन्होंने इसमें मदद की, उनका क्या? चलिए, इस पूरे मामले की तह में जाते हैं और देखते हैं कि सिस्टम में क्या गड़बड़ है।

फर्जी शिक्षक इतने साल कैसे टिके रहे?

फर्जी दस्तावेजों से नौकरी पकड़ने वाले शिक्षकों की बात करें तो 2019 में एसआईटी ने 4000 से ज्यादा ऐसे लोगों को पकड़ा था। फिर भी पांच-छह साल बाद कई अपनी कुर्सी पर जमे रहे। क्या कागजों की जांच इतनी बड़ी पहेली है कि इतना समय लग गया? अब सरकार कह रही है कि इन शिक्षकों को निकालेंगे और वेतन भी वापस लेंगे। ठीक है, जिन्होंने धोखा दिया, उन्हें सजा मिलनी चाहिए। लेकिन जो दस साल से पढ़ा रहे हैं, उनके पास इतना पैसा न हुआ तो वसूली कैसे होगी? क्या जेल भेज देंगे? फिर उनके घरवालों का क्या होगा? ये सवाल गंभीर हैं। सिर्फ शिक्षकों को पकड़ना ही काफी नहीं, जिन्होंने फर्जी कागज बनाए और जिनकी लापरवाही से ये चलता रहा, उनकी भी जांच जरूरी है।

वसूली की बात और असलियत का अंतर

फर्जी शिक्षकों को निकालना और उनसे वेतन वापस लेना सुनने में अच्छा लगता है, पर ये करना इतना आसान नहीं है। जो दस साल से नौकरी कर रहे हैं, क्या उनके पास इतनी जमा-पूंजी होगी कि वसूली हो सके? अगर नहीं, तो क्या करेंगे—जेल डालेंगे? और उनके परिवार का क्या होगा? सजा देना बनता है, पर ये भी देखना होगा कि जिन लोगों ने फर्जी कागज दिए और सिस्टम में बैठे लोगों ने आंखें मूंदीं, वो भी तो इसके जिम्मेदार हैं। सिर्फ शिक्षा विभाग में ही नहीं, रेलवे जैसे बड़े विभागों में भी ऐसा हुआ है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे के एक केस में हैरानी जताई थी कि बिना जांच के नौकरी कैसे मिली। असली परेशानी जांच का ढीला होना ही है।

सिस्टम को ठीक करने का वक्त

फर्जी दस्तावेजों से नौकरी का खेल सिर्फ शिक्षकों की बात नहीं, हर विभाग में ये देखने को मिलता है। सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि बिना ठीक से जांच के सरकारी नौकरी कैसे दी जा सकती है। कई बार तो कर्मचारी रिटायरमेंट के पास पहुंचने पर पकड़े जाते हैं कि उनके कागज फर्जी थे। ऐसे में उनकी सारी कमाई वसूलना न आसान है, न ही व्यवहारिक। सिस्टम ऐसा बनना चाहिए कि नौकरी मिलने से पहले या एक-दो महीने में ही कागजों की पूरी जांच हो जाए। अगर बाद में भी कोई फर्जीवाड़ा पकड़ा जाए, तो सिर्फ उस इंसान को नहीं, पूरे सिस्टम को खंगालना चाहिए कि इसमें कौन-कौन शामिल था। तभी ये गड़बड़ रुकेगी, वरना सिर्फ सजा देने से कुछ हल नहीं होगा।

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