
नशे की लत में पड़ गई। वह अपने घर के पास रहने वाले व्यक्ति के जरिए चिट्टे का इंजेक्शन लेने लगी। धीरे-धीरे उसकी हालत इतनी बिगड़ गई कि उसके हाथ और शरीर के अन्य हिस्सों पर इंजेक्शन के गहरे निशान पड़ गए, जिससे खून भी रिसने लगा। जब माता-पिता को शक हुआ, तो वे उसे सिविल अस्पताल लेकर पहुंचे। जांच के बाद डॉक्टरों ने उसे तुरंत नशा छुड़ाओ केंद्र भेज दिया।
बच्चों में बढ़ती नशे की लत – चिंता का विषय
सिविल अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र के मनोचिकित्सक डॉ. अरविंद गोयल के मुताबिक, इलाज के लिए आने वाले नशे के मरीजों में करीब 5% बच्चे 18 साल से कम उम्र के होते हैं। इनमें से अधिकतर 14 से 18 साल के होते हैं, लेकिन अब इससे भी छोटे बच्चे इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि अस्पताल में आने वाले 70% मरीज चिट्टे के आदी होते हैं, जबकि 20% गांजा और 10% अन्य नशे का सेवन करते हैं।
अभिभावक रहें सतर्क, बच्चों पर रखें नजर
मनोचिकित्सकों का कहना है कि बच्चों का नशे की लत में पड़ना बेहद चिंताजनक है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं होता। आज के डिजिटल दौर में छोटे-बड़े सभी के पास मोबाइल और इंटरनेट है, जिससे बच्चे क्या देख रहे हैं, किससे बात कर रहे हैं, इस पर अभिभावकों की नजर कम रहती है। बच्चों को नशे से बचाने के लिए जरूरी है कि माता-पिता उनकी संगत पर ध्यान दें, उनकी जेब, बैग, कपड़े और कमरा चेक करें। साथ ही, बच्चों को जरूरत से ज्यादा पैसे न दें और मोबाइल फोन के इस्तेमाल को सीमित करें। अगर किसी बच्चे के व्यवहार में अचानक बदलाव दिखे, वह गुस्सैल हो जाए, पढ़ाई में मन न लगे या शारीरिक रूप से कमजोर दिखने लगे, तो इसे हल्के में न लें। ऐसे में तुरंत किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करें।
नशा करने वाले बच्चों में दिख सकते हैं ये लक्षण:
✔ व्यवहार में अचानक बदलाव
✔ परिवार से दूरी बनाना
✔ पढ़ाई में रुचि खत्म होना
✔ शरीर पर इंजेक्शन के निशान या चेहरे-होंठ काले पड़ना
✔ बेहोशी या थकावट महसूस होना
समय रहते अगर माता-पिता सतर्क हो जाएं, तो बच्चों को इस खतरनाक दलदल में जाने से रोका जा सकता है।