दिल्ली

अफेयर के लिए बर्खास्त न्यायिक अधिकारी की बहाली नहीं होने से सुप्रीम कोर्ट नाराज

नई दिल्‍ली। एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ कथित अफेयर के लिए बर्खास्त किए गए न्यायिक अधिकारी को बहाल नहीं करने के पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने नाखुशी जताई है। शीर्ष अदालत ने 2022 में इस न्यायिक अधिकारी के बर्खास्तगी पत्र को रद कर दिया था।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा कि शीर्ष अदालत ने 20 अप्रैल, 2022 को पुरुष न्यायिक अधिकारी के 25 अक्टूबर, 2018 के बर्खास्तगी आदेश को रद कर दिया था और हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ को बर्खास्तगी के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि 26 अक्टूबर, 2018 को हाई कोर्ट की उसी खंडपीठ ने अवैध संबंध के आरोप पर अविश्वास जताते हुए महिला न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को रद कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने हालिया आदेश में कहा कि जब बर्खास्तगी आदेश रद (2022 में सुप्रीम कोर्ट ने) कर दिया गया है। साथ ही बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने के हाई कोर्ट के फैसले को भी रद कर दिया गया है तो कर्मचारी को सेवा में वापस लिया जाना चाहिए।
फिर निर्देशों के अनुसार कार्यवाही करनी चाहिए, लेकिन न तो हाई कोर्ट ने और न ही राज्य ने इस पर कोई फैसला लिया और न ही बर्खास्तगी की तिथि से बकाये वेतन पर कोई आदेश जारी किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक अधिकारी उसके 20 अप्रैल, 2022 के फैसले की तिथि से दो अप्रैल, 2024 को जारी नए बर्खास्तगी आदेश तक पूर्ण वेतन के हकदार होंगे और अपीलकर्ता को सेवा में मानते हुए सभी लाभ भी दिए जाएंगे। जहां तक 17 दिसंबर, 2009 को जारी पहले बर्खास्तगी आदेश से लेकर इस अदालत के बहाली आदेश तक की अवधि का सवाल है तो लगातार सेवा में मानते हुए अपीलकर्ता 50 प्रतिशत बकाया वेतन के हकदार होंगे और उसकी गणना कानून के तहत सभी लाभों को ध्यान में रखते हुए की जाएगी।
पत्नी ने लगाए थे एक्‍सट्रा मेरिटल अफेयर के आरोप
पीठ ने न्यायिक अधिकारी को हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ के 3 अगस्त, 2023 के प्रस्ताव एवं 2 अप्रैल, 2024 को जारी नए बर्खास्तगी आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देने की छूट भी दी। इस मामले में पुरुष न्यायिक अधिकारी की पत्नी ने नवंबर-दिसंबर, 2008 में उनके विरुद्ध एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ संबंधों का आरोप लगाया था। हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ के प्रस्ताव पर पंजाब सरकार ने 17 दिसंबर, 2009 को दोनों न्यायिक अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया था।

 

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