चीनी: इस साल मौसम की मुश्किलों और बीमारियों के कारण गन्ने का उत्पादन घटा है और चीनी निकालने की दर भी कम हो रही है। इससे चीनी उद्योग के लिए मुश्किलें बढ़ रही हैं और किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसका असर उपभोक्ताओं की जेब पर भी पड़ सकता है। “रिकवरी दर” से मतलब है कि गन्ने से कितनी मात्रा में चीनी निकल रही है, जो फसल की गुणवत्ता, मौसम की स्थिति और चीनी मिलों के चालू होने के समय पर निर्भर करता है। भारत में अगर रिकवरी दर 10 प्रतिशत से ऊपर रहती है, तो उसे अच्छा माना जाता है, लेकिन इस बार कोई राज्य उस आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाया है। वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर रिकवरी दर 8.81 प्रतिशत है, जबकि पिछले साल यही आंकड़ा 9.37 प्रतिशत था। इसका मतलब यह है कि इस बार गन्ने से 0.56 प्रतिशत कम चीनी निकल रही है।
उदाहरण के तौर पर, पिछले साल गन्ने से हर क्विंटल में 9.37 किलो चीनी मिल रही थी, जबकि इस साल वही गन्ना सिर्फ 8.81 किलो चीनी दे रहा है। इसके अलावा गन्ने की कीमतें भी बढ़ी हैं। उत्तर प्रदेश में प्रति क्विंटल 20 रुपये का इजाफा हुआ है, और परिवहन, मजदूरी और अन्य खर्चों में भी बढ़ोतरी हुई है। इन सब के बावजूद गन्ने से चीनी निकलने की मात्रा घट गई है, जो किसानों के लिए एक बड़ा संकट है। चीनी मिल मालिक किसानों के गन्ने को कम गुणवत्ता का बताकर उनकी कीमतें घटा रहे हैं। किसान मजबूर हैं क्योंकि गन्ने की उन्नत किस्म 0238 बीमारी की चपेट में आ रही है, और इसका कोई समाधान भी नहीं है। देश में 12 राज्य प्रमुख रूप से गन्ने का उत्पादन करते हैं, लेकिन इनमें से 8 राज्यों में रिकवरी दर में गिरावट आई है। उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार और तेलंगाना को छोड़कर, बाकी राज्यों में रिकवरी दर 9 प्रतिशत तक नहीं पहुंच पाई है। उत्तर प्रदेश, जो कि गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, वहां रिकवरी में 0.85 प्रतिशत की कमी आई है। महाराष्ट्र में 0.15 प्रतिशत, मध्य प्रदेश और हरियाणा में करीब 1 प्रतिशत की गिरावट देखी जा रही है। चीनी मिल मालिकों का कहना है कि उत्पादन लागत में 150 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ोतरी हो गई है, जबकि चीनी का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पिछले पांच साल से स्थिर है। अगर गन्ने के मूल्य में वृद्धि होती है, तो चीनी मिलों का घाटा और बढ़ सकता है। इस कारण, मिलों की मांग है कि चीनी के MSP में इजाफा किया जाए, लेकिन इसका असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ सकता है।