
बिस्तर पर बीते 10 साल, अब फिर से चलीं! सूरजपुर की महिला की दर्द भरी कहानी, डॉक्टर ने बदली किस्मत
दस साल का संघर्ष: जब ज़िंदगी बिस्तर तक सिमट गई-सूरजपुर की एक महिला की कहानी दिल को छू लेने वाली है, जिन्होंने पिछले पूरे दस साल सिर्फ बिस्तर पर ही बिताए। पैरों में असहनीय दर्द ने उनकी दुनिया को चारदीवारी में कैद कर दिया था। आलम ये था कि वो खुद से उठने या चलने-फिरने में भी असमर्थ थीं। हर कोई उनके हाल पर तरस खाता था, पर दुख की बात ये थी कि तमाम इलाज कराने के बावजूद उन्हें कोई आराम नहीं मिल रहा था। धीरे-धीरे उन्होंने जीने की सारी उम्मीदें ही छोड़ दी थीं, मानो ज़िंदगी ने उनसे सारे रास्ते ही बंद कर दिए हों।
हर उम्मीद टूटी, जब इलाज भी हुआ नाकाम-महिला ने हर संभव कोशिश की। अलग-अलग शहरों में डॉक्टरों को दिखाया, महंगी दवाइयां खाईं, लेकिन हर जगह से उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। परिवार और दोस्तों की सारी कोशिशें भी नाकाम साबित हो रही थीं। आखिरकार, उन्होंने यह मान लिया कि अब उनकी बाकी की ज़िंदगी इसी बिस्तर पर ही बीतेगी। लेकिन कहते हैं न, जब उम्मीद की कोई किरण न दिखे, तभी किस्मत कोई नया रास्ता खोलती है।
डॉ. राकेश बिक्कासैनी: उम्मीद की एक नई किरण-उनकी ज़िंदगी में एक नया सवेरा तब आया जब सूरजपुर के जाने-माने डॉक्टर राकेश बिक्कासैनी ने उनका केस अपने हाथ में लिया। डॉक्टर बिक्कासैनी ने महिला के दर्द को गहराई से समझा और खुद को उनकी जगह रखकर इलाज का एक नया तरीका सोचा। जांच-पड़ताल के बाद पता चला कि वह गंभीर रूप से गठिया (आर्थराइटिस) से पीड़ित थीं और उनके घुटने पूरी तरह से खराब हो चुके थे। यह एक बहुत ही नाजुक और मुश्किल स्थिति थी, जिसने सभी को चिंतित कर दिया था।
गंभीर हालत को देखते हुए शुरू हुआ विशेष उपचार-डॉ. राकेश बिक्कासैनी और उनकी पूरी टीम ने महिला की गंभीर हालत को समझते हुए तुरंत ही इलाज शुरू कर दिया। यह कोई आसान काम नहीं था, क्योंकि उनके घुटनों की स्थिति बहुत ही चिंताजनक थी। अगर सही समय पर सही इलाज न मिलता, तो शायद उनकी हालत और भी खराब हो सकती थी। लेकिन डॉक्टर बिक्कासैनी ने हार मानने से इनकार कर दिया और पूरी लगन और मेहनत से इस मुश्किल केस पर काम करना जारी रखा।
घंटों की मशक्कत के बाद सफल हुआ ऑपरेशन-कई घंटों की अथक मेहनत और पूरी टीम के तालमेल से आखिरकार महिला के घुटनों का सफल ऑपरेशन किया गया। डॉ. राकेश बिक्कासैनी और उनकी टीम ने उनके घुटनों का प्रत्यारोपण (नी रिप्लेसमेंट) किया। यह ऑपरेशन बेहद जटिल और चुनौतीपूर्ण था, लेकिन डॉक्टरों की मेहनत और सफलता ने सभी के चेहरों पर मुस्कान ला दी। महिला के लिए यह पल किसी चमत्कार से कम नहीं था, जिसने उन्हें एक नई ज़िंदगी दी।
अब पैरों पर खड़ी, जीवन में आया नया उजाला-जो महिला दस सालों से बिस्तर पर कैद थी, आज वो अपने पैरों पर खड़ी है! जिन पैरों ने उनका साथ छोड़ दिया था, आज वही उन्हें सहारा दे रहे हैं। उनके चेहरे पर जो खुशी थी, उसे देखकर परिवार की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। यह नज़ारा देखने वाले हर किसी को भावुक कर गया। उनके लिए यह सिर्फ एक सफल इलाज नहीं था, बल्कि यह उनकी ज़िंदगी का एक नया अध्याय था, एक दूसरा मौका।
डॉक्टर का कहना: यह मेरा कर्तव्य था-डॉ. राकेश बिक्कासैनी ने नम्रता से कहा कि उन्होंने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है। उनके लिए सबसे बड़ी खुशी की बात यह है कि महिला अब फिर से अपने पैरों पर चल-फिर सकती हैं। यह सिर्फ एक सफल ऑपरेशन की कहानी नहीं है, बल्कि यह सच्ची हिम्मत, अटूट उम्मीद और मानवता की एक बेहतरीन मिसाल है, जिसने एक टूटी हुई ज़िंदगी को फिर से संवार दिया।




