पंजाब यूनिवर्सिटी में सख्ती – कैंपस में सिगरेट पी तो हॉस्टल से बाहर, कर्मचारियों पर भी कार्रवाई

चंडीगढ़: पंजाब यूनिवर्सिटी में सख्ती, कैंपस में धूम्रपान और नशे पर कड़ा एक्शन पंजाब यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कैंपस में धूम्रपान और नशा करने वालों पर सख्ती बरतने का फैसला लिया है और इसको लेकर कड़े नियम लागू किए हैं। डीन स्टूडेंट वेलफेयर ऑफिस की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, अब अगर कोई छात्र कैंपस में खुलेआम धूम्रपान या नशा करता पाया गया, तो पहली बार 500 रुपये जुर्माना देना होगा और माता-पिता को सूचित किया जाएगा। यदि दोबारा ऐसा करते पकड़ा गया, तो*छात्रावास से निष्कासित कर दिया जाएगा। यूनिवर्सिटी स्टाफ और बाहरी लोगों पर भी सख्ती न केवल छात्रों, बल्कि यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों पर भी ये नियम लागू होंगे। अगर कोई कर्मचारी कैंपस में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करता पाया गया, तो उसे भी 500 रुपये का जुर्माना भरना होगा। अगर वह दोबारा ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ नियमों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी। वहीं, बाहरी लोगों के लिए नियम और भी सख्त हैं। अगर कोई बाहरी व्यक्ति कैंपस में धूम्रपान करता पकड़ा गया, तो पहली बार 1000 रुपये जुर्माना लगेगा। दोबारा ऐसा करने पर कैंपस में उसकी एंट्री बैन कर दी जाएगी और उसका वाहन सीज कर ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा।
छात्रावासों में भी बढ़ेगी निगरानी यूनिवर्सिटी प्रशासन ने सभी वार्डनों को छात्रावासों में नियमित रूप से औचक निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, डीन स्टूडेंट वेलफेयर की विशेष टीम भी समय-समय पर निरीक्षण अभियान चलाएगी।
सूत्रों के अनुसार, यह फैसला डीएसडब्ल्यू ऑफिस में कार्यरत सुपरिटेंडेंट अरुण कुमार के खिलाफ अनुसंधानकर्ता शिशपाल की बार-बार की गई शिकायतों के बाद लिया गया। आरोप है कि सुपरिटेंडेंट कैंपस में खुलेआम नशा करते थे, जिसकी कुछ वीडियो भी इंटरनेट पर वायरल हुई थीं। पंजाब यूनिवर्सिटी में ड्रेस कोड लागू इस साल पंजाब यूनिवर्सिटी ने अपने कॉन्वोकेशन समारोह के लिए नया ड्रेस कोड लागू किया। 12 मार्च को आयोजित 72वें दीक्षांत समारोह में छात्र नए ड्रेस कोड में नजर आए। यूनिवर्सिटी ने कॉन्वोकेशन के दौरान फुलकारी जैकेट पहनना अनिवार्य किया था, जिसे दिल्ली की एम.एस. पायनियर्स कंपनी से मंगवाया गया। छात्रों और कॉलेजों में असंतोष हालांकि, इस फैसले को लेकर कुछ कॉलेज प्रशासन और छात्रों में नाराजगी देखी जा रही है। कई कॉलेजों का कहना है कि जब पंजाब में ही कई आपूर्तिकर्ता उपलब्ध हैं, तो फिर दिल्ली की फर्म को प्राथमिकता क्यों दी गई? क्या यूनिवर्सिटी ने अन्य आपूर्तिकर्ताओं को मौका देने के लिए कोई टेंडर जारी किया था?