
भारत-चीन व्यापार घाटा: एक बढ़ती चिंता का विश्लेषण
बढ़ती खाई: व्यापार असंतुलन का गहराता संकट-भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध दिनों-दिन मजबूत हो रहे हैं, लेकिन इस रिश्ते की एक कड़वी सच्चाई यह है कि व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। यह असंतुलन भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। भारत लगातार यह मुद्दा उठाता रहा है कि चीन के बाजार में भारतीय उत्पादों के लिए कई गैर-व्यापारिक बाधाएं (non-trade barriers) मौजूद हैं, जो भारतीय निर्यात को बढ़ने से रोकती हैं। हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए भारत और चीन को मिलकर काम करना होगा। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत आपसी सम्मान, साझा हितों और संवेदनशीलता के आधार पर, एक दीर्घकालिक रणनीति के साथ द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। लेकिन, आंकड़ों पर नज़र डालें तो स्थिति काफी चिंताजनक है। अप्रैल-जुलाई 2025-26 के दौरान, भारत का चीन को निर्यात लगभग 19.97% बढ़कर 5.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, वहीं दूसरी ओर, आयात में 13.06% की वृद्धि के साथ यह आंकड़ा 40.65 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। इसका सीधा मतलब है कि हम जितना बेच रहे हैं, उससे कहीं गुना ज़्यादा चीन से खरीद रहे हैं। 2024-25 में, भारत ने चीन को 14.25 बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि आयात 113.5 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिससे व्यापार घाटा 99.2 बिलियन डॉलर हो गया। यह घाटा 2003-04 में केवल 1.1 बिलियन डॉलर था, जो दर्शाता है कि पिछले दो दशकों में यह खाई कितनी चौड़ी हो गई है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत के कुल व्यापार घाटे (283 बिलियन डॉलर) का लगभग 35% हिस्सा अकेले चीन से आता है। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि दीर्घकालिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।
चीन पर अत्यधिक निर्भरता: क्या है असली समस्या?-व्यापार घाटे का बड़ा होना ही एकमात्र समस्या नहीं है, बल्कि असली चिंता का विषय यह है कि चीन भारतीय अर्थव्यवस्था के लगभग हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए है। चाहे वह फार्मास्यूटिकल्स हो, इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण सामग्री, नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) के क्षेत्र हों, या फिर हमारे रोज़मर्रा के उपयोग की वस्तुएं हों, चीन का दबदबा स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। थिंक टैंक GTRI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी आवश्यक एंटीबायोटिक्स (जैसे एरिथ्रोमाइसिन) का 97.7% चीन से आयात करता है। इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में, सिलिकॉन वेफर्स का 96.8% और फ्लैट पैनल डिस्प्ले का 86% हिस्सा चीन से आता है। इसी तरह, सोलर सेल्स का 82.7% और लिथियम-आयन बैटरी का 75.2% चीन द्वारा आपूर्ति किया जाता है। इतना ही नहीं, लैपटॉप (80.5%), एम्ब्रॉयडरी मशीनरी (91.4%) और विस्कोस यार्न (98.9%) जैसे उत्पाद भी बड़े पैमाने पर चीन से ही आयात किए जाते हैं। इस तरह की अत्यधिक निर्भरता भारत की आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) को कमजोर बनाती है और किसी भी भू-राजनीतिक तनाव की स्थिति में चीन इस स्थिति का भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है। यह निर्भरता न केवल आर्थिक बल्कि सामरिक रूप से भी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है, जिससे देश की आत्मनिर्भरता पर भी सवाल उठते हैं।
आत्मनिर्भरता की ओर कदम: भारत की रणनीतियाँ-इस बढ़ती निर्भरता और व्यापार घाटे की चुनौती से निपटने के लिए, भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इनमें सबसे प्रमुख है ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ (PLI) स्कीम, जिसे 14 से अधिक प्रमुख क्षेत्रों में लागू किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू विनिर्माण (domestic manufacturing) को बढ़ावा देना और भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना है। इसके साथ ही, सरकार ने आयातित उत्पादों के गुणवत्ता मानकों को और अधिक सख्त किया है, ताकि निम्न-गुणवत्ता वाले सामानों को भारतीय बाजार में प्रवेश करने से रोका जा सके। भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को विविध बनाएं और केवल चीन पर निर्भर रहने के बजाय अन्य देशों से भी आयात करें। इसके अलावा, वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाली महानिदेशालय व्यापार उपचार (DGTR) को यह अधिकार दिया गया है कि यदि कोई चीनी कंपनी किसी उत्पाद की अनुचित डंपिंग (unfair dumping) कर रही है, तो उस पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाई जा सके। अब तक कई रासायनिक और इंजीनियरिंग उत्पादों पर ऐसी डंपिंग रोधी शुल्क लगाए जा चुके हैं, जो घरेलू उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये उपाय भारत को चीन पर अपनी निर्भरता कम करने और एक मजबूत, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनाने में मदद करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
व्यापार घाटे का व्यापक प्रभाव: अर्थव्यवस्था पर असर-भारत और चीन के बीच इतना बड़ा व्यापार घाटा भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई गंभीर प्रभाव डाल सकता है। सबसे पहला और सीधा असर देश के विदेशी मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves) पर पड़ता है, क्योंकि आयात के लिए हमें अधिक डॉलर खर्च करने पड़ते हैं, जिससे डॉलर की मांग बढ़ती है। दूसरा, सस्ते चीनी सामानों के बड़े पैमाने पर आयात से भारतीय घरेलू उद्योगों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी बाजार हिस्सेदारी कम हो जाती है और विकास की गति धीमी पड़ जाती है। यदि आयात का यह सिलसिला इसी तरह जारी रहा, तो भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ेगा, जिससे मुद्रास्फीति (inflation) में वृद्धि हो सकती है और आम आदमी की जेब पर बोझ बढ़ सकता है। लंबे समय तक आयात पर निर्भरता बने रहने से भारत में नए उद्योगों की स्थापना और मौजूदा उद्योगों के विस्तार में बाधा आ सकती है, जो ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों के उद्देश्यों के विपरीत है। संक्षेप में, यह व्यापार घाटा केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध देश की आर्थिक सुरक्षा, रोजगार सृजन और समग्र आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ है। इस पर प्रभावी ढंग से नियंत्रण पाना भारत के आर्थिक भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।



