बस्तर में बदलता माहौल: नक्सल के गढ़ में अब शिक्षा की रौशनी, गुरुकुल बना नई शुरुआत का प्रतीक

बस्तर में विकास की नई सुबह: नक्सलवाद से विकास की ओर-बस्तर, जो कभी नक्सलवाद की छाया में डूबा हुआ था, अब विकास की ओर अग्रसर है। सरकार और सुरक्षा बलों के संयुक्त प्रयासों से नक्सलियों का प्रभाव कम हुआ है और विकास की बातें जोर पकड़ रही हैं।
शिक्षा का उजाला: हिड़मा में सीआरपीएफ का गुरुकुल-हिड़मा, जो कभी नक्सलवाद का केंद्र था, अब शिक्षा का नया केंद्र बन रहा है। सीआरपीएफ ने यहाँ एक गुरुकुल स्थापित किया है, जहाँ बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद की सुविधाएँ भी मिल रही हैं। यह पहल दर्शाती है कि विकास अब सिर्फ़ कागज़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि जमीनी स्तर पर भी दिखाई दे रहा है। 2005 में जहाँ सड़क तक नहीं पहुँच पाई थी, आज वहाँ प्रशासन पहुँच रहा है और शिक्षा का दीपक जला रहा है।
पूवर्ती और टेकलगुड़ेम में नई शुरुआत-पूवर्ती और टेकलगुड़ेम जैसे नक्सल प्रभावित गाँव अब शिक्षा के केंद्र बनते जा रहे हैं। सीआरपीएफ के गुरुकुल में 80 से ज़्यादा बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। कुछ बच्चे 100 किलोमीटर दूर कुआकोंडा में रहकर भी पढ़ाई कर रहे हैं, जो इस क्षेत्र में एक नई सोच का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि बच्चों के लिए शिक्षा पाने की चाहत कितनी प्रबल है और वे इसके लिए कितनी दूर तक जाने को तैयार हैं।
साझा प्रयास से विकास का मार्ग प्रशस्त- सीआरपीएफ के डीआईजी आनंद सिंह राजपुरोहित के अनुसार, बस्तर में तीन गुरुकुल सफलतापूर्वक चल रहे हैं जहाँ बच्चों को अच्छी शिक्षा, खेलकूद और एक सकारात्मक माहौल दिया जा रहा है। सुकमा के जिला शिक्षा अधिकारी जीआर मंडावी ने बताया कि पूवर्ती में स्कूल भवन का निर्माण चल रहा है और पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों को फिर से स्कूल से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। माता-पिता से बातचीत करके 35 बच्चों को स्कूल वापस लाने में सफलता मिली है। यह साझा प्रयास विकास की एक नई दिशा दिखाता है।




