Cg प्रदेश कांग्रेस : लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत
प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व

रायपुर :- प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पत्रकार वार्ता लेकर आरोप लगाया कि
छत्तीसगढ़ की जांच एजेंसी ईओडब्लू/एसीबी अभियुक्तों के खिलाफ झूठे साक्ष्य गढ़ रही है।
फारेंसिक जांच से प्रमाणित हुआ कि दो अलग-अलग फॉन्ट का प्रयोग हुआ।
न्यायिक प्रक्रिया की लगातार धज्जियां उड़ा रही है ईओडब्लू/एसीबी, क्या इसमें अदालतों की सहमति है?
इस मामले की निष्पक्ष जांच न हुई और दोषियों पर कार्रवाई न हुई तो लोकतंत्र का ढांचा चरमरा जाएगा।
फिर कौन वकील अपने मुवक्किल को जांच एजेंसियों के चंगुल से बचा पाएगा?
ऽ दो दिन पहले वरिष्ठ वकीलों ने पत्रकारों को यह सूचना दी थी कि छत्तीसगढ़ ईओडब्लू/एसीबी के एक आपराधिक षडयंत्र का भंडाफ़ोड़ हुआ है।
ऽ इस मामले में इस जांच एजेंसी ने न्यायालयीन प्रक्रिया की इस तरह धज्जियां उड़ाई हैं कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें हिल जायेगी।
ऽ दुर्भाग्यजनक है कि इस पूरे मामले में अदालत की भूमिका भी संदिग्ध दिखाई दे रही है और ऊंची अदालतों को इस मामले का संज्ञान लेकर तुरंत हस्तक्षेप करना पड़ेगा।
ऽ अभी कुछेक मामले सामने आए हैं, हम नहीं जानते कि यह कब से हो रहा है, लेकिन अगर यह हो रहा है तो इस देश में न्याय और न्याय के लिए लड़ने वाले वकील साहेबान दोनों खतरें में हैं।

धारा 164 का कलमबद्ध बयान
ऽ दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) जो वर्तमान में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ( BNSS) बन गया है, एक ऐसा अधिनियम है जो अपराधों की जांच, गिरफ्तारी, सबूत इकट्ठा करने, और दोषियों को सजा सुनाने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
ऽ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 की धारा 164 जो कि अब BNSS की धारा 183 है, के तहत किसी भी अभियुक्त या गवाह का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया जाता है।
ऽ इसे कलमबद्ध बयान भी कहा जाता है और यह एक गोपनीय दस्तावेज होता है।
ऽ धारा 164 के तहत दर्ज बयान को बंद कमरे में कलमबद्ध किया जाता है।
क्या है मामला
ऽ दस्तावेजों से पता चला है कि किसी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज करवाने में जांच एजेंसी ईओडब्लू/एसीबी आपराधिक षडयंत्र कर रही है।
ऽ नियमानुसार अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के सामने अपना मौखिक बयान कलमबद्ध करवाना होता है।
ऽ यह बयान अदालत के लिपिक की ओर से दर्ज किया जाता है फिर उस पर अभियुक्त के हस्ताक्षर लिए जाते हैं।
कैसे मिली इसकी जानकारी
ऽ कथित कोयला घोटाले (अपराध क्रमांक – 02/2024, 03/2024) के मामले में अभियुक्त सूर्यकांत तिवारी की ज़मानत के मामले में ईओडब्लू/एसीबी की ओर से एक दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया।
ऽ इन दस्तावेजों में सह-अभियुक्त निखिल चंद्राकर का दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज बयान की प्रति भी लगाई गई थी।
ऽ इसी प्रति से ईओडब्लू/एसीबी के आपराधिक षडयंत्र का भांडा फूटा है।
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कई स्तरों पर शिकायत
ऽ इन तथ्यों के सामने आने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील गिरीश चंद्र देवांगन जी ने 10 अक्टूबर, 2025 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष एक परिवाद पेश किया है।
ऽ इससे पहले गिरीश देवांगन जी ने 12/09/2025 को रजिस्ट्रार (सतर्कता) छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के समक्ष शिकायत दर्ज करवाई थी।
ऽ गिरीश देवांगन जी ने फोरेंसिक विशेषज्ञ इमरान खान से इन दस्तावेजों की जांच भी करवाई. उनकी रिपोर्ट आने के बाद उन्होंने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, रायपुर के समक्ष शिकायत दर्ज करवाई।
अकेला मामला नहीं है
ऽ 16-17 जुलाई को निखिल चंद्राकर के मामले में अदालत में पेन ड्राइव के बयान को धारा 164 का बयान बना लेने का मामला अकेला मामला नहीं है।
ऽ इसकी शिकायत तो 12 सितंबर, 2025 को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (सतर्कता) से की जा चुकी थी।
ऽ लेकिन 30 सितंबर, 2025 को रायपुर की एक और अदालत में कुछ अधिवक्ताओं ने देखा कि ईओडब्ल्यू/एसीबी की ओर से दो अलग अलग मामलों में प्रस्तुत कुछ सह अभियुक्तों से माननीय न्यायाधीश की ओर से बयान लिए जा रहे हैं और कंप्यूटर पर पेन ड्राइव लगी हुई है।
लोकतंत्र की जड़ों पर हमला
ऽ हमारे लोकतंत्र के तीन घोषित स्तंभ हैं और तीनों स्वतंत्र रूप से लोकतंत्र की मजबूती के लिए कार्य करते हैं।
ऽ अगर विधायिका के सदस्यों के इशारे पर कार्यपालिका और न्यायपालिका मिलकर षडयंत्र रचने लगें तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?
ऽ 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से कार्यपालिका की एक एक इकाई को धीरे धीरे या तो कमज़ोर किया गया या इतना कमज़ोर बना दिया गया कि वे कठपुतली की तरह काम करने लगे।
कांग्रेस की मांग
1. इस पूरे मामले की जांच हो और अदालत विशेष अदालतों से हर उस बयान की प्रतियां मंगाकर जांच करे कि किस किस एजेंसी ने किस किस मामले में इस तरह से बयान दर्ज करवाया है।
2. ईओडब्लू/एसीबी के निदेशक अमरेश मिश्रा व अन्य दो अधिकारियों राहुल शर्मा और चंद्रेश ठाकुर पर आपराधिक मुकदमा दर्ज हो तथा समुचित कार्रवाई हो।
3. जब तक इस मामले की जांच पूरी न हो जाए छत्तीसगढ़ सरकार इन अधिकारियों को पदमुक्त करके रखे और कोई अन्य ज़िम्मेदारी न दे जिससे कि जांच निष्पक्ष हो सके. यदि सरकार इन्हें पद से नहीं हटाती है तो यह स्वमेव स्पष्ट हो जाएगा कि दरअसल यह सब प्रदेश की भाजपा सरकार के संरक्षण में हो रहा है।
4. इस मामले में ऐसी कोई नज़ीर बने जिससे कि देश का हर वकील अपने मुवक्किल को भरोसा दिला सके कि वह दोषी नहीं है तो किसी भी जांच एजेंसी के मामले में अदालत से उसे न्याय दिलवा सकेगा।
5. माननीय अदालत से अपील है कि वह इस मामले को माननीय उच्च न्यायालय और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में भी लाए, जिससे कि देश में किसी और स्थान पर कोई एजेंसी या कोई निचली अदालत ऐसी गुस्ताखी न कर सके।




