
शिक्षा के अधिकार का हनन: कोर्ट की सख्त चेतावनी, क्या सिस्टम पर सवाल?
कोर्ट का पारा चढ़ा: ‘हमें मज़ाक में न लें!’-बिलासपुर हाईकोर्ट में बुधवार को शिक्षा के अधिकार (RTE) से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान शिक्षा सचिव का कोर्ट में हाजिर न होना, चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि वे इसे हल्के में न लें। अगली बार जब सुनवाई होगी, तो शिक्षा सचिव को खुद आकर बताना होगा कि अब तक दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 17 अक्टूबर तय की है, और तब तक इस पर ठोस जवाब की उम्मीद है।
गरीब बच्चों का हक, कहीं छीन तो नहीं लिया जा रहा?-कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि जो लोग नकली कागजात के सहारे अमीर बच्चों को आरटीई के तहत सीटें दिलवा रहे हैं, उन पर क्या एक्शन लिया गया है। अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह मामला सीधे तौर पर गरीब बच्चों के हक से जुड़ा है, और इसमें किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह सिर्फ कानून को तोड़ना नहीं, बल्कि एक तरह का सामाजिक अन्याय भी है, जब जरूरतमंद बच्चों का हक मारा जाए।
जनहित याचिका से खुला बड़ा फर्जीवाड़ा: सिस्टम पर उठे सवाल-यह पूरा मामला भिलाई के एक सामाजिक कार्यकर्ता भगवंत राव ने वकील देवर्षि ठाकुर के ज़रिए कोर्ट में पहुंचाया। याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि आरटीई के तहत मिलने वाली गरीब बच्चों की सीटें धड़ल्ले से फर्जीवाड़े से हड़पी जा रही हैं, और शिक्षा विभाग इस पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रहा है। यह सिर्फ कुछ लोगों की गड़बड़ी का मामला नहीं, बल्कि यह पूरे शिक्षा सिस्टम की कार्यप्रणाली पर ही एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।
बिना मान्यता वाले स्कूल: बच्चों के भविष्य से खिलवाड़?-याचिका में एक और गंभीर चिंता जताई गई है कि कई निजी स्कूल, खासकर नर्सरी और केजी स्तर तक के, बिना किसी सरकारी मान्यता के चल रहे हैं। इन स्कूलों के संचालन पर शिक्षा विभाग की तरफ से कोई खास सख्ती नहीं दिख रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब ये स्कूल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, तो इन पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? अदालत ने इस मुद्दे पर भी अपनी गहरी चिंता जाहिर की है।



